किशोर न्याय अधिनियम २०१५
धारा ९ :
ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया जिसे इस अधिनियम के अधीन सशक्त नहीं किया गया है ।
१) जब किसी मजिस्ट्रेट की जो इस अधिनियम के अधीन बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सशक्त नहीं है, यह राय है कि वह व्यक्ती, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने अपराध किया है, और उसके समक्ष लाया गया है, कोई बालक है तो वह ऐसी राय को अविलंब अभिलेखबद्ध करेगा और उस बालक को तत्काल ऐसी कार्यवाही के अभिलेख के साथ कार्यवाहियों पर अधिकारिता रखने वाले बोर्ड को भेजेगा ।
२) यदि वह व्यक्ति, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने अपराध किया है, बोर्ड से भिन्न किसी न्यायालय के समक्ष यह दावा करता है कि वह व्यक्ति बालक है या अपराध के किए जाने की तारीख को बालक था, या यदि न्यायालय की स्वयं यह राय है कि वह व्यक्ति अपराध के किए जाने की तारीख को बालक था, तो उक्त न्यायालय उस व्यक्ति की आयु की अवधारणा करने के लिए ऐसी जांच करेगा, ऐसा साक्ष्य लेगा जो आवश्यक है (किन्तु शपथपत्र नहीं) और उस व्यक्ति की यथासंभव निकटतम आयु का कथन करते हुए मामले के निष्कर्ष अभिलिखित करेगा :
परन्तु ऐसा कोई दावा किसी न्यायालय के समक्ष किया जा सकेगा और उसको किसी भी प्रक्रम पर, मामले का अंतिम निपटारा हो जाने के पश्चात् भी, स्वीकार किया जाएगा और उस दावे का अवधारण इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों में अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार किया जाएगा, भले ही वह व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को या उससे पूर्व बालक न रह गया हो ।
३) यदि न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है और वह ऐसे अपराध के किए जाने की तारीख को बालक था, तो वह उस बालक को बोर्ड के पास, समुचित आदेश पारित करने के लिए भेजेगा और न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के, यदि कोई हो, बारे में यह समझा जाएगा कि उसका कोई प्रभाव नहीं है ।
४) यदि इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति को, जब उस व्यक्ति के बालक होने के दावे की जांच की जा रही है, संरक्षात्मक अभिरक्षा में रखा जाना अपेक्षित है, तो उस व्यक्ति को उस अंत:कालीन अवधि में सुरक्षित स्थान में रखा जा सकेगा ।