किशोर न्याय अधिनियम २०१५
अध्याय ३ :
किशोर न्यायिक बोर्ड :
धारा ४ :
किशोर न्यायिक बोर्ड ।
१)दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, प्रत्येक जिले में एक या अधिक किशोर न्याय बोर्डों को, इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के संबंध में शक्तियों का प्रयोग करने और उसके कृत्यों का निर्वहन करने के लिए, स्थापित करेगी ।
२) बोर्ड एक ऐसे महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, जो मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ( जिसे इसमें इसके पश्चात प्रधान मजिस्ट्रेट कहा गया है) न हो, जिसके पास कम से कम तीन वर्ष का अनुभव हो और दो ऐसे सामजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर बनेगा जिनका चयन ऐसी रीति से किया जाएगा, जो विहित की जाए और उनमें से कम से कम एक महिला होगी । यह एक न्यायपीठ का रुप लेगा और ऐसी न्यायपीठ को वही शक्तियां प्राप्त होंगी, जो दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ द्वारा, यथास्थिति, किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रदत्त की गई है ।
३) किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता को बोर्ड के सदस्य के रुप में नियुक्त तभी किया जाएगा जब ऐसा व्यक्ति कम से कम सात वर्ष तक बालकों से तात्पर्यित स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण संबंधी क्रियाकलापों में सक्रिय रुप से अंतर्वलित हो या बाल मनोविज्ञान, मनोरोग विज्ञान, सामाजिक विज्ञान या विधि में डिग्री सहित व्यवसायरत वृत्तिक हो ।
४) कोई भी व्यक्ति बोर्ड के सदस्य रुप में चयन के लिए पात्र नहीं होगा, यदि,-
एक) उसका मानव अधिकारों या बाल अधिकारों का अतिक्रमण किए जाने का कोई पिछला रिकार्ड है;
दो) उसे ऐसे किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसमें नैतिक अधमता अंतर्वलित है और ऐसी दोषसिद्धि को उलटा नहीं गया है या उसे अपराध के संबंध में पूर्ण क्षमा प्रदान नहीं की गई है ;
तीन) उसे केन्दीय सरकार या किसी राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी उपक्रम या निगम की सेवा से हटा दिया गया है या पदच्युत कर दिया गया है ;
चार) वह कभी बालक दुव्र्यवहार या बाल श्रम के नियोजन या किसी अन्य मानव अधिकारों के अतिक्रमण या अनैतिक कार्य में लिप्त रहा है।
५) राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी सदस्यों, जिनके अंतर्गत बोर्ड में का प्रधान मजिस्ट्रेट भी है, का देखरेख, संरक्षण, पुनर्वासन, बालकों के लिए विधिक उपबंधों और न्याय के संबंध में ऐसा समावेशन, प्रशिक्षण और संवेदीकरण, जो विहित किया जाए, उसकी नियुक्ति की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर अधिष्ठापन किया जाए ।
६) बोर्ड के सदस्यों की पदावधि और वह रीति जिसमें ऐसा सदस्य त्यागपत्र दे सकेगा, ऐसी होगी, जो विहित की जाए ।
७) बोर्ड के किसी सदस्य की, प्रधान मजिस्ट्रेट के सिवाय, नियुक्ति को राज्य सरकार द्वारा जांच करने के पश्चात् समाप्त किया जा सकता है, यदि वह सदस्य,-
एक) इस अधिनियम के अधीन निहित की गई शक्ति के दुरुपयोग का दोषी पाया गया है; या
दो) बोर्ड की कार्यवाहियों में बिना किसी विधिमान्य कारण के लगातार तीन मास तक भाग लेने में असफल रहता है; या
तीन) किसी वर्ष में १.(न्यूनतम तीन चौथाई) बैठकों में भाग लेने में असफल रहता है; या
चार) सदस्य के रुप में अपनी अवधि के दौरान उपधारा (४) के अधीन अपात्र हो जाता है ।
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१. २०२१ के अधिनियम सं० २३ की धारा ४ द्वारा तीन-चौथाई से कम शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।