किशोर न्याय अधिनियम २०१५
धारा ३८ :
किसी बालक की दत्तकग्रहण के लिए विधिक रुप से मुक्त घोषित करने की प्रक्रिया ।
१) अनाथ और परित्यक्त बालक की दशा में, समिति, बालक के माता-पिता या संरक्षकों का पता लगाने का सभी प्रयास करेगी और ऐसी जांच पूरी होने पर यदि यह स्थापित हो जाता है कि बालक या तो अनाथ है, जिसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है या परित्यक्त है, तो समिति बालक को दत्तकग्रहण के लिए विधिक रुप से मुक्त घोषित करेगी :
परन्तु ऐसी घोषणा ऐसे बालकों के लिए, जो दो वर्ष तक की आयु तक के है, बालक के पेश किए जाने की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर और ऐसे बालकों के लिए, जो दो वर्ष से अधिक आयु के है, चार मास के भीतर की जाएगी :
परन्तु यह और कि इस बारे में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन किसी परित्यक्त या अभ्यर्पित बालक के संबंध में जांच की प्रक्रिया में किसी जैविक माता-पिता के विरुद्ध कोई प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्ट नहीं की जाएगी ।
२) अभ्यर्पित बालक की दशा में वह संस्था, जहां अभ्यर्पण संबंधी आवेदन पर समिति द्वारा बालक को रखा गया है, धारा ३५ के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के पूरा होने पर बालक को दत्तकग्रहण के लिए विधिक रुप से मुक्त घोषित करने के लिए उस मामले को समिति के समक्ष लाएगी ।
३) मानसिक रुप से विकृत माता-पिता के बालक या लैंगिक हमले से पीडित व्यक्ति के अवांछित बालक की दशा में उस बालक को समिति द्वारा इस अधिनियम के अधीन प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए, इस बारे में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, दत्तकग्रहण के लिए मुक्त घोषित किया जा सकेगा ।
४) अनाथ, परित्यक्त और अभ्यर्पित बालक को दत्तकग्रहण के लिए विधिक रुप से मुक्त घोषित करने का विनिश्चय समिति के कम से कम तीन सदस्यों द्वारा किया जाएगा ।
५) समिति, दत्तकग्रहण के लिए विधिक रुप से मुक्त घोषित किए गए बालकों की संख्या और विनिश्चयार्थ लंबित मामलों की संख्या के बारे में १.(जिला मजिस्ट्रेट), राज्य अभिकरण और प्राधिकरण को, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, प्रतिमास सूचित करेगी ।
——–
१. २०२१ के अधिनियम सं० २३ की धारा १२ द्वारा अन्त:स्थापित ।