सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम २०००
धारा ६६क :
१.(संसूचना सेवा आदि द्वारा आक्रामक संदेश भेजने के लिए दंड :
१.जन विश्वास (संशोधन) अधिनियम २०२३ (२०२३ का १८) की धारा २ और अनुसूची द्वारा लोप किया गया। धारा ६६ए को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, एआईआर २०१५ एससी १५२३, उच्चतम न्यायालय के आदेश दिनांक २४ मार्च, २०१५ द्वारा निरस्त कर दिया गया है।
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कोई व्यक्ति, जा किसी कंप्यूटर या किसी संसूचना के माध्यम से, –
क)ऐसी किसी सूचना को, जो अत्याधिक आक्रामक या धमकाने वाली प्रक्रति की है; या
ख)ऐसी किसी सूचना को,जिसका वह मिथ्या होना जानता है, किंतु क्षोभ, असुविधा, खतरा, रूकावट, अपमान, क्षति या आपराधिक अभित्रास, शत्रुता, घृणा या वैमनस्य फैलाने के प्रयोजन के लिए, लगातार ऐसे कंप्यूटर संसाधन या किसी संसूचना युक्ति का उपयोग करके,
ग) ऐसी किसी इलैक्ट्रानिक डाक या इलैक्ट्रानिक डाक संदेश को, ऐसे संदेशों के उदूम के बारे में प्रेषिती या पाने वाले को क्षोभ या असुविधा कारित करने या प्रवंचित या भ्रमित करने के प्रयोजन के लिए,
भेजता है तो वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के प्रयोजनों के लिए, इलैक्ट्रानिक डाक और इलैक्ट्रानिक डाक संदेश पदों से किसी कंप्युटर, कंप्यूटर प्रणाली, कंप्यूटर संसाधन या संचार युक्ति में सृजित या पारेषित या प्राप्त किया गया कोई संदेश या सूचना अभिप्रेत है, जिसके अंतर्गत पाठ, आकृति, आडियो, वीडियो और किसी अन्य इलैक्ट्रानिक अभिलेख के ऐसे संलग्नक भी है, जो संदेश के साथ भेजे जाएं।)