भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ९९ :
कोई कार्य, जिनके विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है :
(See section 37 of BNS 2023)
यदि कोई कार्य या बात, जिससे मृत्यू या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रुप से कारित नहीं होती; सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोकसेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ।
यदि कोई कार्य या बात, जिससे मृत्यू या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रुप से कारित नहीं होती; सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोकसेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह निदेश विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ।
उन दशाओं में जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है, प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है ।
इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार : किसी दशा में भी निजी(प्राईवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करनी आवश्यक है ।
स्पष्टीकरण १ :
कोई व्यक्ती किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक के नाते किए गए या किए जाने के लिए प्रयतित,कार्य के विरुध्द निजी(प्राईवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जबकि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ती ऐसा लोक सेवक है ।
स्पष्टीकरण २ :
कोई व्यक्ती किसी लोक सेवक के निदेश से किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित, किसी कार्य के विरुध्द निजी(प्राईवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है, या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे, जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, तो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे ।