भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ९८ :
विकृतचित्त (मनोविकल) व्यक्ती या आदी व्यक्ती के कार्य के विरुद्ध निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार :
(See section 36 of BNS 2023)
जबकि कोई कार्य या बात, जो अन्यथा कोई अपराध होता है, उस कार्य या बात को करने वाले व्यक्ती के बालकपन, अपरिपक्व समझ, चित्तविकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ती के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ती उस कार्य के विरुध्द निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता ।
दृष्टांत :
क) (य) पागलपन के असर में, (क) को जान से मारने का प्रयत्न करता है । (य) किसी अपराध का दोषी नहीं है । किन्तु (क) को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह (य) के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता ।
ख) (क) रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रुप से हकदार है । (य) सद्भावपूर्वक (क) को गृह भेदक समझकर (क) पर आक्रमण करता है । यहां (य) इस भ्रम के अधीन (क) पर आक्रमण करके कोई अपराधध नहीं करत किंतु (क), (य) के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब (य) उस भ्रम के अधीन कार्य न करता ।