भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ८९ :
संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य :
(See section 27 of BNS 2023)
कोई बात या कार्य, जो बारह वर्ष के आयु के या विकृतचित्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक के, या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दुसरे व्यक्ति के द्वारा, या की अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से, कीया जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ती को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :
परन्तुक : परन्तु –
पहला : इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यूकारित करने या मृत्यू कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;
दुसरा : इस अपवाद का विस्तार मृत्यू या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति (कर्ता) जानता हो कि उससे मृत्यू कारित होना संभाव्य है ।
तिसरा : इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छा घोर उपहति कारित करने या प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यू या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो ;
चौथा : इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है ।
दृष्टांत :
(क) सद्भावपूर्वक, अपने शिशु के फायदे के लिए अपने शिशु की सम्मति के बिना, यह संभाव्य जानते हुए कि शस्त्र कर्म से उस शिशु की मृत्यु कारित होगी, न कि इस आशय से कि उस शिशु को मृत्यु कारित कर दे, शल्यचिकित्सक द्वारा पथरी निकलवाने के लिए अपने शिशु की शल्यक्रिया करवाता है । (क) का उद्देश्य शिशु को रोगमुक्त कराना था, इसलिए वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।