भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ५३क :
१.(निर्वासन (कालापानी /आजीवन कारावास) के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना :
१)उपधारा (२) और (३) के उपबंधोके अध्यधीन किसी अन्य तत्समय(उसी समय) प्रवृत्ति(अंमल में) विधि में या किसी ऐसी विधि या किसी नियसित अधिनियमोंके आधार पर प्रभावशील किसी लिखित आदेश में आजीवन निर्वासन(कालापानी/आजीवन कारावास) के प्रति निर्देश का अर्थ आजीवन कारावास लागाया जायेगा ।
२)जिसमें कि किसी अवधि के लिए निर्वासन(कालापाणी) का दण्डादेश दण्ड प्रक्रिया संहिता २.(संशोधन १९५५ का २६) के प्रारंभ से पूर्व दिया गया हे, ऐसे हर मामले में अपराधी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मानो वह उसी अवधि के लिए कठिन (सश्रम) कारावास के लिए दंडित किया गया हो ।
३)तत्समय (उस समय) प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी अवधि के लिए निर्वासन (कालापाणी/आजीवन कारावास) या किसी लघुत्तर अवधि के लिए निर्वासन के प्रति (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) कोई निर्देश लुप्त कर दिया गया समझा जाएगा ।
४)तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में निर्वासन के प्रति जो कोई निर्देश हो –
क) यदि उस पद से आजीवन निर्वासन अभिप्रेत है, तो उसका अर्थ आजीवन कारावास के प्रति निर्देश होना लगाया जाएगा;
ख) यदि उस पद से किसी लघुत्तर अवधि के लिए निर्वासन अभिप्रेत है, तो वह लुप्त कर दिया गया है यह समझा जाएगा ।)
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा (१-१-१९५६ से) अन्त:स्थापित ।
२. १९५७ के अधिनियम सं० ३६ की धारा ३ और अनुसूची २ द्वारा १९५४ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।