भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ५०६ :
आपराधिक अभित्रास (धमकी / डराना) के लिए दण्ड :
(See section 351(2) and (3) of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : आपराधिक अभित्रास ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ( राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ : संज्ञेय ) ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : संज्ञेय ) ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ( राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ : जमानतीय ) ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : अजमानतीय ) ।
शमनीय या अशमनीय : अभित्रस्त व्यक्ति ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ) ।
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अपराध : यदि धमकी, मृत्यु या घोर उपहति कारित करने, आदि की हो ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ( राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ : संज्ञेय ) ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : संज्ञेय ) ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ( राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ : जमानतीय ) ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : अजमानतीय ) ।
शमनीय या अशमनीय : अभित्रस्त व्यक्ति ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ( राज्य संशोधन, उत्तरप्रदेश : प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ) ।
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जो कोई आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सेकगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
यदि धमकी, मृत्यु या घोर उपहति इत्यादि कारित करने की हो –
और यदि धमकी मृत्यु या घोर उपहति कारित करने की, या अग्नि द्वारा किसी सम्पत्ति का नाश कारित करने की या मृत्यु दण्ड से या १.(आजीवन कारावास) से, या सात वर्ष की अवधि तक के कारावास से दण्डनीय अपराध कारित करने की , या किसी स्त्री पर असतीत्व का लांछन लगाने की हो , तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
राज्य संशोधन :
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ :
धारा ५०६ के तहत अपराध संज्ञेय और जमानतीय है ।
आपराधिक अभित्रास यदि धमकी मृत्यु कारित करने या घो उपहति इत्यादि कारित करने की हो , तो यह न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ती द्वारा शमनीय है जिसके विरुद्ध आपराधिक अभित्रास का अपराध कारित किया गया था ।
उत्तरप्रदेश :
इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय, अजमानतीय, अशमनीय और प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।