Ipc धारा ५०५ : लोक रिष्टिकारक वक्तव्य :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ५०५ :
१.(लोक रिष्टिकारक वक्तव्य :
(See section 353 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : मिथ्या कथन, जनश्रुति, आदि को इस आशय से परिचालित करना कि विद्रोह हो अथवा लोक-शान्ति के विरुद्ध अपराध हो ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ( राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ : संज्ञेय )।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : मिथ्या कथन, जनश्रुति, आदि, इस आशय से कि विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा हो ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : पूजा के स्थान आदि में किया गया मिथ्या कथन, जनश्रुति, आदि इस आशय से कि शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा हो ।
दण्ड :पाँच वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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२.(१)) जो कोई किसी कथन, जन श्रुति या रिपोर्ट को –
क) इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि ३.(भारत की) सेना, ४.(नौसेना या वायुसेना) का कोई ऑफिसर, सैनिक, ५.(नाविक, या वायुसैनिक) विद्रोह करे या अन्यथा वह अपने उस नाते अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे; अथवा
ख) इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, लोक या लोक के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो जिससे कोई व्यक्ती राज्य के विरुद्ध या लोक प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो; अथवा
ग) इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, उससे व्यक्तीयों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दुसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित किया जाए,
रचेगा, प्रकाशित करेगा, या परिचालित करेगा वह कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि ६.(तीन वर्ष) तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
७.(२)विभिन्न वर्गो में शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा या सम्प्रवर्तित करने वाले कथन :
जो कोई जन श्रुति या संत्रासकारी समाचार अंन्तविष्ट करने वाले किसी कथन या रिपोर्ट को, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्न धार्मिक, मूलवंशिय, भाषाई या प्रादेशिक समुहों या जातियों या समुदायों की बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, रचेगा, प्रकाशित करेगा, या परिचालित करेगा, वह कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
३) पूजा के स्थान आदि में किया गया उपधारा (२) के अधीन अपराध :
जो कोई उपधारा (२) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ।)
अपवाद :
ऐसा कोई कथन, जन श्रुति या रिपोर्ट इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध की कोटी में नही आती, जब उसे रचने वाले, प्रकाशित करने वाले या परिचालित करने वाले व्यक्ती के पास इस विश्वास के लिए युक्तियुक्त आधार हो कि ऐसा कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट सत्य है और ८.(वह उसे सद्भावपूर्वक तथा पूर्वोक्त जैसे किसी आशय के बिना) रचता है, प्रकाशित करता है या परिचालित करता है ।)
राज्य संशोधन :
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ :
धारा ५०५ की उपधारा (१) के तहत अपराध संज्ञेय है ।
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१. १८९८ के अधिनियम सं० ४ की धारा ६ द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९६९ के अधिनियम सं० ३५ की धारा ३ द्वारा धारा ५०५ को उसकी उपधारा (१) के रुप में पुन:संख्यांकित किया गया ।
३. विधि अनुकूलन आदेश, १९५० द्वारा हर मजेस्टी की या इम्पीरियल सर्विस ट्रूप्स के स्थान पर प्रतिस्थापित । मजेस्टी शब्द के पश्चातवर्ती या रायल इंडियन मैरिन में शब्दों का १९३४ के अधिनियम सं० ३५ की धारा २ और अनुसूची द्वारा लोप किया गया था।
४. १९२७ के अधिनियम सं० १० की धारा २ और अनुसूची १ द्वारा या नौसेना के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. १९२७ के अधिनियम सं० १० की धारा २ और अनुसूची १ द्वारा या नौसैनिक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. १९६१ के अधिनियम सं० ४१ की धारा ४ द्वारा दो वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
७. १९६९ के अधिनियम सं० ३५ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित ।
८. १९६९ के अधिनियम सं० ३५ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित ।

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