Ipc धारा ४९९ : मानहानि :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
अध्याय २१ :
मानहानि के विषय में :
धारा ४९९ :
मानहानि :
(See section 356(1) of BNS 2023)
जो कोई बोले गए या पढे जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रुपणों द्वारा किसी व्यक्ती के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ती की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ती की अपहानि होगी, एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ती की मानहानि करता है ।
स्पष्टीकरण १ :
किसी मृत व्यक्ती को कोई लांछन लगाना मानहानि के कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ती की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो ।
स्पष्टीकरण २ :
किसी कंपनी या संगम या व्यक्तीयों के समुह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा ।
स्पष्टीकरण ३ :
अनुकल्प के रुप में, या व्यंगोक्ति के रुप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सेकगा ।
स्पष्टीकरण ४ :
कोई लांछन किसी व्यक्ती की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दुसरों की दृष्टी में प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उस व्यक्ती के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरुप को हेय न करे या उस व्यक्ती की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ती की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ती का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रुप से निकृष्ट समझी जाती है ।
दृष्टांत :
क) (क) यह विश्वास कराने के आशय से कि (य) ने (ख) की घडी अवश्य चुराई है, कहता है, (य) एक ईमानदार व्यक्ति है, उसने (ख) की घडी कभी नहीं चुराई है । जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो यह मानहानि है ।
ख) (क) से पूछा है कि (ख) की घडी किसने चुराई है । (क) यह विश्वास कराने के आशय से कि (य) ने (ख) की घडी चुराई है, (य) की ओर संकेत करता है जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है ।
ग) (क) यह विश्वास करोने के आशय से कि (य) ने (ख) की घडी चुराई है, (य) का एक चित्र खींचता है जिसमें वह (ख) की घडी लेकर भाग रहा है । जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो यह मानहानि है ।
अपवाद पहला :
सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है :
किसी ऐसी बात का लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ती के संबंध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, यदि यह लोक कल्याण के लिए हो कि वह लांछन लगाया जाए या प्रकाशित किया जाए । वह लोक कल्याण के लिए है या नहीं है यह तथ्य का प्रश्न है ।
अपवाद दुसरा :
लोक सेवकों का लोकाचरण :
उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में लोक सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहां तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता है, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।
अपवाद तीसरा:
किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ती का आचरण :
किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ती के आचरण के विषय में, और उसके शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।
दृष्टांत :
किसी लोक प्रश्न पर सरकार को अर्जी देने में, किसी लोक प्रश्न के लिए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने में, ऐसी सभा का सभापतित्व करने में या उसमें हाजिर होने में, किसी ऐसी समिति का गठन करने में या उसमें सम्मिलित होने में, जो लोक समर्थन आमंत्रित करती है, किसी ऐसे पद के किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मत देने में या उसके पक्ष में प्रचार करने में, जिसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन से लोक हितबद्ध है, (य) आचरण के विषय में (क) द्वारा कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।
अपवाद चौथा :
न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टो का प्रकाशन :
किसी न्यायालय की कार्यवाहियों की या किन्ही ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम की सारत: सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है ।
स्पष्टीकरण :
कोई जस्टीस ऑफ दी पीस या अन्य ऑफिसर, जो किसी न्यायालय में विचारण से पूर्व की प्रारंभिक जांच खुले न्यायालय में कर रहा हो, उपरोक्त धारा के अर्थ के अन्तर्गत न्यायालय है ।
अपवाद पाँचवा :
न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण(गुणदोष) या साक्षियों तथा संपृक्त अन्य व्यक्तीयों का आचरण :
किसी ऐसे मामले के गुणागुण(गुणदोष) के विषय में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, जो किसी न्यायालय द्वारा विनिश्चित हो चुका हो, या किसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अभिकर्ता के रुप में किसी व्यक्ती के आचरण के विषय में या ऐसे व्यक्ती के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।
दृष्टांत :
क) (क) कहता है में समझता हूं कि उस विचारण में (य) का साक्ष्य ऐसा परस्पर विरोधी है कि वह अवश्य ही मूर्ख या बेईमान होना चाहिए । यदि (क) ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है तो यह इस अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, क्योंकि जो राय वह (य) के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है, वह ऐसी है जैसी कि साक्षी के रुप में (य) के आचरण से, न कि उसके आगे, प्रकट होती है ।
ख) किन्तु यदि (क) कहता है जो कुछ (य) ने उस विचारण में दृढतापूवर्वक कहा है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है, तो (क) इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह राय जो वह (य) के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रुप में (य) के आचरण पर आधारित नहीं है ।
अपवाद छठा :
लोक कृति के गुणागुण (गुणदोष) :
किसी ऐसी कृति के गुणागुण (गुणदोष) के विषय में, जिसको उसके कर्ता न लोक के निर्णय के लिए रखा हो, या उसके कर्ता के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील ऐसी कृति में प्रकट होता हो, न कि उसके आगे, कोई राय, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।
स्पष्टीकरण :
कोई कृति लोक के निर्णय के लिए अभिव्यक्त रुप से या कर्ता की और से किए गए ऐसे कार्यो द्वारा, जिनसे लोक के निर्णय के लिए ऐसा रखा जाना विवक्षित हो, रखी जा सकती है ।
दृष्टांत :
क) जो व्यक्ति पुस्तक प्रकाशित करता है वह उस पुस्तक को लोक के निर्णय के लिए रखता है ।
ख) वह व्यक्ति, जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक से निर्णय के लिए रखता है ।
ग) वह अभिनेता या गायक, जो किसी लोक रंगमंच पर आता है,े अपने अभिनय या गायन को लोक के निर्णय के लिए रखता है ।
घ) (क), (य) द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के संबंध में कहता है (य) की पुस्तक मूर्खतापूर्ण है, (य) अवश्य कोई दुर्बल पुरुष होना चाहिए । (य) की पुस्तक अशिष्टतापूर्ण है, (य) अवश्य ही अपवित्र विचारों का व्यक्ति होना चाहिए । यदि (क) ऐसा सद्भापूर्वक कहता है, तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है, क्योंकि वह राय जो वह, (य) के विषय में अभिव्यक्त करता है, (य) के शील से वहीं तक, न कि उससे आगे सम्बन्ध रखती है जहां तक कि (य) का शील उसकी पुस्तक से प्रकट होता है ।
ङ) किन्तु यदि (क) कहता है मुझे इस बात का आश्चर्य नहीं है कि (य) की पुस्तक मूर्खतापूर्ण तथा अशिष्टतापूर्ण है क्योंकि वह एक दुर्बल और लम्पट व्यक्ति है । (क) इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता क्योंकि वह राय, जो कि वह (य) के शील के विषय में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है जो (य) की पुस्तक पर आधारित नहीं है ।
अपवाद सातवाँ :
किसी अन्य व्यक्ती के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ती द्वारा सद्भावपूर्वक की गई परिनिन्दा :
किसी ऐसे व्यक्ती द्वारा, जो किसी अन्य व्यक्ती के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता हो, जो या तो विधि द्वारा प्रदत्त हो या उस अन्य व्यक्ती के साथ की गई किसी विधिपूर्ण संविदा से उद्धत हो, ऐसे विषयों में, जिनसे कि ऐसा विधिपूर्ण प्राधिकार संबंधित हो, उस अन्य व्यक्ती के आचरण की सद्भावपूर्वक की गई कोई परिनिन्दा मानहानि नहीं है ।
दृष्टांत :
किसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के किसी आफिसर के आचरण की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश, उन व्यक्तियों की, जो उसके आदेशों के अधीन है, सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई विभागाध्यक्ष, अन्य शिशुओं की उपस्थिति में किसी शिशु की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला पिता या माता, अन्य विद्यार्थियों की उपस्थिति में किसी विद्यार्थी की सद्भावपर्वक परिनिन्दा करने वाला शिक्षक, जिसे विद्यार्थी के माता-पिता के प्राधिकार प्राप्त है, सेवा में शिथिलता के लिए सेवक की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला स्वामी, अपने बैंक के रोकडिए की, ऐसे रोकडिए के रुप में ऐसे रोकडिए के आचरण के लिए, सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई बैंककार इस अपवाद के अन्तर्गत आते है ।
अपवाद आठवाँ :
प्राधिकृत व्यक्ती के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना :
किसी व्यक्ती के विरुद्ध कोई अभियोग ऐसे व्यक्तीयों में से किसी व्यक्ती के समक्ष सद्भावपूर्वक लगान, जो उस व्यक्ती के ऊपर अभियोग की विषय वस्तु के संबंध में विधिपूर्ण प्राधिकार रखते हों, मानहानि नहीं है ।
दृष्टांत :
यदि (क) एक मजिस्ट्रेट के समक्ष (य) पर सद्भावपूर्वक अभियोग लगाता है, यदि (क) एक सेवक (य) के आचरण के सम्बन्ध में (य) के मालिक से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; यदि (क) एक शिशु (य) के सम्बन्ध में (य) के पिता से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; तो (क) इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।
अपवाद नौवाँ :
अपने या अन्य के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ती द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन :
किसी अन्य के शील पर लांछन लगाना मानहानि नहीं है परन्तु यह तब जब कि उसे लगाने वाले व्यक्ती के या किसी अन्य व्यक्ती के हित की संरक्षा के लिए, या लोक कल्याण के लिए, वह लांछन सद्भावपूर्वक लगाया गया हो ।
दृष्टांत :
क) (क) एक दुकानदार है । वह (ख) से, जो उसके कारबार का प्रबन्ध करता है, कहता है, (य) को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद धन न दे दे, क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेंरी राय अच्छी नहीं है । यदि उसने (य) पर यह लांछन अपने हितों की संरक्षा के लिए सद्भावपूर्वक लगाया है, तो (क) इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।
ख) (क), एक मजिस्ट्रेट अपने वरिष्ठ आफिसर को रिपोर्ट देते हुए, (य) के शील पर लांछन लगाता है । यहां, यदि वह लांछन सद्भावपूर्वक और लोक कल्याण के लिए लगाया गया है, तो (क) इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।
अपवाद दसवाँ :
सावधानी, जो उस व्यक्ती की भलाई के लिए, जिसे कि वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित है :
एक व्यक्ती को दूसरे व्यक्ती के विरुद्ध सद्भावपूर्वक सावधान करना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब जब कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ती की भलाई के लिए, जिसे वह दी गई हो, या किसी एसे व्यक्ती की भलाई के लिए, जिससे वह व्यक्ती हितबद्ध हो, या लोक कल्याण के लिए आशयित हो ।

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