भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ४९१ :
असहाय व्यक्ति की परिचर्या (ध्यान देना) करने की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की संविदा का भंग :
(See section 357 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : किशोरावस्था या चित्तविकृति या रोग के कारण असहाय व्यक्ति परिचर्या करने या उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आबद्ध होते हुए उसे करने का स्वेच्छया लोप ।
दण्ड :तीन मास के लिए कारावास, या दो सौ रुपए का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : वह व्यक्ति जिसके साथ अपराधी ने संविदा की है ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी ऐसे व्यक्ती की, जो किशोरावस्था या चित्तविकृति या रोग या शारीरिक दुर्बलता के कारण असहाय है, या अपने निजी क्षेम की व्यवस्था या अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधिपूर्ण संविदा द्वारा आबद्ध होते हुए, स्वेच्छया ऐसा करने का लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।