भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ४७७ क :
१.(लेखा का मिथ्याकरण :
(See section 344 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : लेखा का मिथ्याकरण ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनो ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट (राज्य संशोधन, मध्यप्रदेश : सेशन न्यायालय) ।
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जो कोई, लिपिक, ऑफिसर या सेवक होते हुए, या लिपिक, ऑफिसर या सेवक के नाते नियोजित होते हुए या कार्य करते हुए, किसी ऐसी २.(पुस्तक, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख, कागज,लेख), मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा को, जो उसके नियोजक का हो या उसके नियोजक के कब्जे में हो, या जिसे उसके नियोजक के लिए या उसकी और से प्राप्त किया हो, जानबूझकर और कपट करने के आशय से नष्ट, परिवर्तित, विकृत या मिथ्याकृत करेगा अथवा किसी ऐसी पुस्तक, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख, कागज, लेख, मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा में जानबूझकर और कपट करने के आशय से कोई मिथ्या प्रविष्टि करेगा या मिथ्या प्रविष्टि करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, या उसमें से या उसमें किसी तात्विक विशिष्टि का लोप या परिवर्तन करेगा, वह दोनों में से भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के अधीन किसी आरोप में, किसी विशिष्ट व्यक्ती का, जिससे कपट करना आशयित था, नाम बताए बिना या किसी विशिष्ट धनराशि का जिसके विषय में कपट किया जाना आशयित था या किसी विशिष्ट दिन का, जिस दिन अपराध किया गया था, विनिर्देश किए बिना, कपट करने के साधारण आशय का अभिकथन पर्याप्त होगा ।
राज्य संशोधन :
मध्यप्रदेश :
धारा ४७७ क के अधीन अपराध सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।)
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१. १८९५ के अधिनियम सं० ३ की धारा ४ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. २००० के अधिनियम सं० २१ की धारा ९१ और पहली अनुसूची द्वारा पुस्तक, कागज, लेखा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।