Ipc धारा ४६४ : मिथ्या दस्तावेज रचना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ४६४ :
मिथ्या दस्तावेज रचना :
(See section 335 of BNS 2023)
१.(उस व्यक्ती के बारे में यह कहा जाता है कि वह व्यक्ती मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है –
पहला : जो बेईमानी से या कपटपूर्वक इस आशय से –
क) किसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रचित, हस्ताक्षरित, मुद्रांकित या निष्पादित करता है;
ख) किसी इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के भाग को रचित या सम्प्रेषित(पारेषित) करता है;
ग) किसी इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पर कोई २.(इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर)) करता है;
घ) किसी दस्तावेज का निष्पादन या २.(इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर)) की प्रमाणिकता घोतन (सूचित) करने वाला कोई चिन्ह लगाता है,
कि यह विश्वास किया जाए कि ऐसी दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख या २.(इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर)) की रचना , हस्ताक्षरण, मुद्रांकन, निष्पादन, सम्प्रेषण (पारेषित) या संयोजन ऐसे व्यक्ती द्वारा या ऐसे व्यक्ती के प्राधिकार द्वारा किया गया था, जिसके द्वारा या जिसके प्राधिकार द्वारा उसकी रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन, या निष्पादन, संप्रेषण या संयोजन न होने की बात वह जानता है; अथवा
दुसरा : जो किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के किसी तात्विक भाग में परिवर्तन, उसके द्वारा या किसी अन्य व्यक्ती द्वारा, चाहे ऐसा व्यक्ती ऐसे परिवर्तन के समय जीवित हो या नहीं, उस दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के रचित, निष्पादित या २.(इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर)) से संयोजित किये जाने के पश्चात् उसे रद्द करने द्वारा या अन्यथा, विधिपूर्वक प्राधिकार के बिना बेईमानी से या कपट पूर्वक करता है; अथवा
तीसरा : जो किसी व्यक्ती द्वारा, यह जानते हुए कि ऐसा व्यक्ती दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख की विषयवस्तु को परिवर्तन के रुप को, चित्तविकृति या मत्तता की हालत में होने के कारण जान नहीं सकता या उस प्रवंचना के कारण, जो उससे की गई है, जानता नहीं है, उस दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को बेईमानी से, या कपटपूर्वक हस्ताक्षरित, मुद्रांकित, निष्पादित, या परिवर्तित किया जाना या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पर अपने २.(इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर)) किया जाना कारित करता है ।
दृष्टांत :
क) (क) के पास (य) द्वारा (ख) पर लिखा हुआ १०,००० रुपए का एक प्रत्यय पत्र है । (ख) से कपट करने के लिए (क) १०००० में एक शून्य बढा देता है और उस राशि को १.००,००० रुपए इस आशय से बना देता है कि (ख) यह विश्वास कर ले कि (य) ने यह पत्र ऐसा ही लिखा था । (क) ने कूटरचना की है ।
ख) (क) इस आशय से कि वह (य) की सम्पदा (ख) को बेच दे और उसके द्वारा (ख) से क्रय धन अभिप्राप्त कर ले, (य) के प्राधिकार के बिना (य) की मुद्रा एक ऐसी दस्तावेज पर लगाता है, जो कि (य) की ओर से (क) सम्पदा का हस्तान्तरपत्र होना तात्पर्यित है । (क) ने कूटरचना की है ।
ग) एक बैंकार पर लिखे हुए और वाहक को देय चेक को (क) उठा लेता है । चेक (ख) द्वारा हस्ताक्षरित है, किन्तु उस चेक में कोई राशि अंकित नहीं है । (क) १०,००० रुपए की राशि अंकित करके चेक को कपटपूर्वक भर लेता है । (क) कूटरचना करता है ।
घ) (क) अपने अभिकर्ता (ख) के पास एक बैंकार पर लिखा हुआ (क) द्वारा हस्ताक्षरित चेक, देय धनराशि अंकित किए बिना छोड देता है । (ख) को (क) इस बात के लिए प्राधिकृत कर देता है कि वह कुछ संदाय करने के लिए चेक में ऐसी धनराशि, जो दस हजार रुपए से अधिक न हो अंकित करके चेक भर ले । (ख) कपटपूर्वक चेक में बीस हजार रुपए अंकित करके उसे भर लेता है । (ख) कूटरचना करता है ।
ड) (क), (ख) के प्राधिकार के बिना (ख) के नाम में अपने ऊपर एक विनिमय पत्र इस आशय से लिखता है कि वह एक बैंकार से असली विनिमयपत्र की भांति बट्टा देकर उसे भुना ले, और उस विनिमयपत्र को उसकी परिपक्वता पर ले ले, यहां (क) इस आशय से उस विनिमयपत्र को लिखता है कि प्रवंचना करके बैंकार को यह अनुमान करा दे कि उसे (ख) की प्रतिभूति प्राप्त है, और इसलिए वह उस विनिमयपत्र को बट्टा लेकर भुना दे । (क) कूटरचना का दोषी है ।
च) (य) की विल में ये शब्द अन्तर्विष्ट है कि मै निदेश देता हूं कि मेंरी समस्त शेष सम्पत्ति (क), (ख) और (ग) में बराबर बांट दी जाए । (क) बेईमानी से (ख) का नाम इस आशय से खुरच डालता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि समस्त सम्पत्ति उसके स्वयं के लिए और (ग) के लिए ही छोडी गई थी । (क) ने कूटरचना की है ।
छ) (क) एक सरकारी वचनपत्र को पृष्ठांकित करता है और उस पर शब्द (य) को या उसके आदेशानुसार दे दो लिखकर और पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर करके उसे (य) को या उसके आदेशानुसार देय कर देता है । (ख) बेईमानी से (य) को या उसके आदेशानुसार दे दो इन शब्दों को छीलकर मिटा डालता है, और इस प्रकार उस विशेष पृष्ठांकन को एक निरंक पृष्ठांकन में परिवर्तित कर देता है । (ख) कूटरचना करता है ।
ज) (क) एक सम्पदा (य) को बेच देता है और उसका हस्तांतर-पत्र लिख देता है । उसके पश्चात् (क), (य) को कपट सम्पदा से वंचित करने के लिए उसी सम्पदा को एक हस्तान्तर-पत्र जिस पर (य) के हस्तान्तर-पत्र की तारीख से छह मास पूर्व की तारीख पडी हुई है, (ख) के नाम इस आशय से निष्पादित कर देता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि उसने अपनी सम्पदा (य) को हस्तान्तरित करने से पूर्व (ख) को हस्तान्तरित कर दी थी । (क) ने कूटरचना की है ।
झ) (य) अपनी विल (क) से लिखवाता है । (क) साशय एक ऐसे वसीयतदार का नाम लिख देता है, जो कि उस वसीयतदार से भिन्न है, जिसका नाम (य) ने कहा है, और (य) को व्यपदिष्ट करके कि उसने विल उसके अनुदेशों के अनुसार ही तैयार की है, (य) को विल पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्प्रेरित करता है । (क) ने कूटरचना की है ।
ञ) (क) एक पत्र लिखता है और (ख) के प्राधिकार के बिना, इस आशय से कि उस पत्र के द्वारा (य) से और अन्य व्यक्तियों से भिक्षा अभिप्राप्त करे, (ख) के नाम के हस्ताक्षर यह प्रमाणित करते हुए कर देता है कि (क) अच्छे शील का व्यक्ति है और अनपेक्षित दुर्भाग्य के कारण दीन अवस्था में है । यहां (क), ने (य) को सम्पत्ति, अलग करने के लिए उत्प्रेरित करने को मिथ्या दस्तावेज रची है, इसलिए (क) ने कूटरचना की है ।
ट) (ख) के प्राधिकार के बिना (क) इस आशय से कि उसके द्वारा (य) के अधीन नौकरी अभिप्राप्त करे (क) के शील को प्रमाणित करते हुए एक पत्र लिखता है और उसे (ख) के नाम से हस्ताक्षरित करता है । (क) ने कूटरचना की है क्योंकि उसका आशय कूटरचित प्रमाणपत्र द्वारा (य) को प्रवंचित करने का और ऐसा करके (य) को सेवा की अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा में प्रविष्ट होने के लिए उत्प्रेरित करने का था ।
स्पष्टीकरण १ :
किसी व्यक्ती का स्वयं अपने नाम का हस्ताक्षर करना कूटरचना की कोटि में आ सकेगा ।
दृष्टांत :
क) (क) एक विनिमयपत्र पर अपने हस्ताक्षर इस आशय से करता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह विनिमयपत्र उसी नाम के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया था । (क) ने कूटरचना की है ।
ख) (क) एक कागज के टुकडे पर शब्द प्रतिगृहीत किया लिखता है और उस पर (य) के नाम के हस्ताक्षर इसलिए करता है कि (ख) बाद में इस कागज पर एक विनिमयपत्र, जो (ख) ने (य) के ऊपर किया है, लिखे और उस विनिमयपत्र का इस परक्रामण करे, मानो वह (य) के द्वारा प्रतिगृहीत कर लिया गया था । (क) कूटरचना का दोषी है, तथा यदि (ख) इस तथ्य को जानते हुए (क) के आशय के अनुसरण में, उस कागज पर विनिमयपत्र लिख देता है, तो (ख) भी कूटरचना का दोषी है ।
ग) (क) अपने नाम के किसी अन्य व्यक्ति के आदेशानुसार देय विनिमयपत्र पडा पाता है । (क) उसे उठा लाता है और यह और विश्वास कराने के आशय से स्वयं अपने नाम पृष्ठांकित करता है कि इस विनिमयपत्र पर पृष्ठांकन उसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया था जिसके आदेशानुसार वह देय है । वहां, (क) ने कूटरचना की है ।
घ) (क), (ख) के विरुद्ध एक डिक्री के निष्पादन में बेची गई सम्पदा को खरीदता है । (ख) सम्पदा के अभिगृहीत किए जाने के पश्चात् (य) के साथ दुस्सन्धि करके (क) को कपटवंचित करने और यह विश्वास कराने के आशय से कि वह पट्टा अभिग्रहण से पूर्व निष्पादित किया गया था, नाममात्र के भाटक पर और एक लम्बी कालावधि के लिए (य) के नाम उस सम्पदा का पट्टा कर देता है और पट्टे कर देता है और पट्टे पर अभिग्रहण से छह मास पूर्व की तारीख डाल देता है । (ख) यद्यपि पट्टे का निष्पादन स्वयं अपने नाम से करता है, तथापि उस पर पूर्व की तारीख डालकर वह कूटरचना करता है ।
ङ) (क) एक व्यापारी अपने दिवाले का पूर्वानुमान करके अपनी चीजवस्तु (ख) के पास (क) के फायदे के लिए और अपने लेनदारों को कपटवंचित करने के आशय से रख देता है ; और प्राप्त मूल्य के बदले में, (ख) को एक धनराशि देने के लिए अपने को आबद्ध करते हुए, एक वचनपत्र उस संव्यवहार को सच्चाई की रंगत देने के लिए लिख देता है, और इस आशय से कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह वचनपत्र उसने उस समय से पूर्व ही लिखा था जब उसका दिवाला निकलने वाला था, उस पर पहले की तारीख डाल देता है । (क) ने परिभाषा के प्रथम शीर्षक के अधीन कूटरचना की है ।
स्पष्टीकरण २ :
कोई मिथ्या दस्तावेज किसी कल्पित व्यक्ती के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज एक वास्तविक व्यक्ती द्वारा रची गई थी, या किसी मृत व्यक्ती के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज उस व्यक्ती द्वारा उसके जीवनकाल में रची गई थी, कूटरचना की कोटि में आ सकेगा ।
दृष्टांत :
(क) एक कल्पित व्यक्ति के नाम कोई विनिमयपत्र लिखता है, और उसका परक्रामण करने के आशय से उस विनिमयपत्र को ऐसे कल्पित व्यक्ति के नाम से कपटपूर्वक प्रतिगृहीत कर लेता है । (क) कूटरचना करता है ।
३.(स्पष्टीकरण ३ :
इस धारा के प्रयोजनों के लिए इलेक्ट्रॉनिक चिन्हक (हस्ताक्षर) करना अभिव्यक्ति का वही अर्थ होगा जो उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, २००० (२००० का २१) की धारा २ की उपधारा (१) के खण्ड (घ) में समनुदेशित है ।))
———
१. २००० के अधिनियम सं० २१ की धारा ९१ तथा अनुसूची १ द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम २००८ की धारा ५१ द्वारा अंकीय चिन्ह के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. २००० के अधिनियम सं० २१ की धारा ९१ तथा अनुसूची १ द्वारा अन्त:स्थापित ।

Leave a Reply