भारतीय दण्ड संहिता १८६०
अप्राकृतिक अपराध :
धारा ३७७ :
१.(प्रकृति विरुद्ध अपराध :
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : प्रकृति विरुद्ध अपराध ।
दण्ड :आजीवन कारावास, या दस वर्ष के लिए कारावास, और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ( राज्य संशोधन, मध्य प्रदेश : सेशन न्यायालय ) ।
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जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीवजन्त (पशु) के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रियभोग करेगा, वह २.(आजीवन कारावास) से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा में वर्णित अपराध के लिए आवश्यक इन्द्रियभोग गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है ।)
राज्य संशोधन :
मध्य प्रदेश : धारा ३७७ के अधीन अपराध सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।
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१. (डब्ल्यू पी (सीव्हील) ५७२/२०१६, डब्ल्यू पी (सीआरएल) ८८, १००, १०१, १२१/२०१८ नवतेज सिंग जोहर अॅन्ड ओआरएस विरुद्ध युनियन ऑफ इंडिया. सवोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, १८६० की धारा ३७७ को रद्द कर दिया ।
२. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।