भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ३६१ :
विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण (व्यक्ती को ले भागना) :
(See section 137 of BNS 2023)
जो कोई किसी अप्राप्तवय ( अवयस्क / अप्रौढ) को, यदि वह नर हो, तो १.(सोलह) वर्ष से कम आयु वाले को, या यदि वह नारी हो तो, २.(अठारह) वर्ष से कम आयु वाली को या किसी विकृतचित व्यक्ती को ऐसे अप्राप्तवय ( अवयस्क / अप्रौढ) या विकृतचित व्यक्ती के विधिपूर्ण संरक्षकता में से ऐसे संरक्षक के सम्मति के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है, वह ऐसे अप्राप्तवय ( अवयस्क / अप्रौढ) या ऐसे व्यक्ती का व्यक्ती का विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा में विधिपूर्ण संरक्षक शब्द के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ती आता है जिस पर ऐसे अप्राप्तवय ( अवयस्क / अप्रौढ) या अन्य व्यक्ती की देखरेख या अभिरक्षा का भार विधिपूर्वक नस्त (सुपुर्द करना) किया गया है ।
अपवाद :
इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ती के कार्य पर नहीं है, जिसे सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि वह किसी अधमर्ज शिशु का पिता है, या जिसे सद्भावपूर्वक या विश्वास है की वह ऐसे शिशु की विधिपूर्ण अभिरक्षा का हकदार है, जब तक की ऐसा कार्य दुराचारिक या विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिए न किया जाए ।
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१. १९४९ के अधिनियम सं० ४२ की धारा २ द्वारा चौदह के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९४९ के अधिनियम सं० ४२ की धारा २ द्वारा सोलह के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
