Ipc धारा ३३५ : प्रकोपन (उत्तेजना) पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ३३५ :
प्रकोपन (उत्तेजना) पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना :
(See section 122 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : प्रकोपन देने वाले व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति को उपहति करने का आशय न रखते हुए गंभीर और अचानक प्रकोपन पर घोर उपहति कारित करना ।
दण्ड :चार वर्ष के लिए कारावास, या दो हजार रुपए जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : वह व्यक्ति जिसे उपहति कारित की गई है ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई गंभीर और अचानक प्रकोपन (उत्तेजना) पर १.(स्वेच्छया) घोर उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ती से भिन्न, जिसने प्रकोपन (उत्तेजना) दिया था, किसी व्यक्ती को उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि चार वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
अंतिम दो धाराएं उन्हीं परन्तुकों के अध्यधीन है, जिनके अध्यधीन धारा ३०० का अपवाद १ है ।
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१. १८८२ के अधिनियम सं० ८ की धारा ८ द्वारा अन्त:स्थापित ।

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