भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २४१ :
किसी सिक्के का असली सिक्के के रुप में परिदान, जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, कूटकृत होना नहीं जानता था :
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : किसी कूटकृत सिक्के का असली सिक्के के रुप में जानते हुए दूसरे को परिदान जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था कूटकृत होना नहीं जानता था ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास, या कूटकृत सिक्के के मूल्य का दस गुना जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी दुसरे व्यक्ती को कोई ऐसा कूटकृत सिक्का, जिसका कूटकृत होना वह जानता हो, किन्तु जिसका वह उस समय, जब उसने अपने कब्जे में लिया, कूटकृत होना नहीं जानता था, असली सिक्के के रुप में परिदान करेगा या किसी दूसरे व्यक्ती को उसे असली सिक्के के रुप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकृत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
दृष्टांत :
(क), एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी (ख) को कूटकृत कम्पनी का रुपए चलाने के लिए परिदत्त करता है, (ख) उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति (ग) को बेच देता है, जो उन्हें कूटकृत जानते हुए खरीदता है । (ग) उन रुपयों को (घ) को, जो उनको कूटकृत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है । (घ) को रुपया प्राप्त होने के पश्चात यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकृत है, और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों । यहां, (घ) केवल इस धारा के अधीन दंडनीय है, किन्तु (ख) और (ग), यथास्थिति, धारा २३९ या २४० के अधीन दंडनीय है ।