भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २०३ :
किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना :
(See section 240 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई यह जानते हुए, या वह विश्वास करने का कारण रखते हुए, कि कोई अपराध किया गया है उस अपराध के बारे में कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, वह दोनो में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सेकगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
१.(स्पष्टीकरण :
धारा २०१ और २०२ में और इस धारा में अपराध शब्द के अन्तर्गत २.(भारत) के बाहर किस स्थान पर किया गया कोर्स भी ऐसा कार्य आता है, जो यदि २.(भारत) के भितर किया जाता तो या २.(भारत) में किया जाता तो निम्मलिखित धारा अर्थात् ३०२, ३०४, ३८२, ३९२, ३९३, ३९४, ३९५, ३९६, ३९७, ३९८, ३९९, ४०२, ४३५, ४३६, ४४९, ४५०, ४५७, ४५८, ४५९ और ४६० में से किसी भी धारा के अधीन दण्डनीय होता ।)
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१. १८९४ के अधिनियम सं० ३ की धारा ६ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया ।