Ipc धारा १९४ : मृत्यू से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढना (रचना) :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १९४ :
मृत्यू से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढना (रचना) :
(See section 230 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : किसी व्यक्ति को मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढना ।
दण्ड :आजीवन कारावास या दस वर्ष के लिए कठिन कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय ।
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अपराध : यदि निर्दोष व्यक्ति उसके द्वारा दोषसिद्ध किया जाता है और उसे फांसी दे दी जाती है ।
दण्ड :मृत्यू या यथा उपर्युक्त ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय ।
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जो कोई १.(२.(भारत) में तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा) मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए किसी व्यक्ती को दोषसिद्ध कराने के आशय से या सम्भाव्यत: उसद्वारा दोषसिद्ध कराएगा, यह जानते हुए मिथ्या साक्ष्य देगा या गढेगा (रचेगा), वह ३.(आजीवन कारावास) से, या कठिन कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
यदि निर्दोष व्यक्ती एतद्द्वारा (उसके द्वारा) दोषसिद्ध किया जाए और उसे फांसी दी जाए :
और यदि किसी निर्दोष व्यक्ती को ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणाम स्वरुप दोषसिद्ध किया जाए, और उसे फांसी दे दी जाए, तो जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देगा, उस व्यक्ती को, या तो मृत्युदण्ड या एतस्मिन पूर्व (इसमें इसके पूर्व) वर्णित दण्ड दिया जाएगा ।
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१. विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा ब्रिटिश भारत या इंग्लैंड की विधि द्वारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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