भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १७७ :
मिथ्या इत्तिला देना :
(See section 212 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : लोक सेवक को जानते हुए मिथ्या इत्तिला देना ।
दण्ड :छह मास के लिए कारावास, या एक हजार रुपए का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि अपेक्षित इत्तिला अपराध किए जाने आदि के विषय में हो ।
दण्ड :दो वर्ष के लिए कारावास, या एक हजार रुपए का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी लोक सेवक को ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रुप से आबद्ध (बंधा हुआ) होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रुप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ;
अथवा यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए, वह वैध रुप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकडने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
दृष्टांत :
क) (क) एक भू-धारक यह जाने हुए कि उसकी भू-सम्पदा की समीओं के अंदर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप कांटने के परिणामस्वरुप दुर्घटना से हुई है । (क) इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है ।
ख) (क) जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बडा गिरोह (य) के गृह में, जो पडोस के गांवा का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया है और बंगाल संहिता के १८२१ के १.(विनियम) ३ की धारा ७ के खंड ५ के अधीन जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील के लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है । यहां (क) इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है ।
२.(स्पष्टीकरण :
धारा १७६ में और इस धारा में अपराध शब्द के अन्तर्गत ३.(भारत) से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा ३०२, ३०४, ३८२, ३९२, ३९३, ३९४, ३९५, ३९६, ३९७, ३९८, ३९९, ४०२, ४३५, ४३६, ४४९, ४५०, ४५७, ४५८, ४५९, और ४६० में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता; और अपराधी शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ती आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो ।)
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१. १८६२ के अधिनियम सं० १७ द्वारा निरसित ।
२. १८९४ के अधिनियम सं०३ की धारा ५ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर संशोधित हो कर उपरोक्त रुप में आया ।