Ipc धारा १२४ क : १.(राजद्रोह :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १२४ क :
१.(राजद्रोह :
(See section 152 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : राजद्रोह
दण्ड : आजीवन कारावास और जुर्माना, या तीन वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना, या जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय
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जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरुपण द्वारा या अन्यथा २.(***) ३.(भारत) ४.(***) में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने को प्रयत्न करेगा, अप्रीति प्रदीप्त करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करने को प्रयत्न करेगा, वह ५.(आजीवन कारावास) से, जिसमें जुर्माना जोडा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोडा जा सकेगा, या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण १ :
अप्रीति पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती है ।
स्पष्टीकरण २ :
घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त किए बिना या अप्रीति प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अनुमोदन प्रकट करने वाली टिका, टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं है ।
स्पष्टीकरण ३ :
घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त किए बिना या अप्रीति प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार की प्रशासनि या अन्य क्रिया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टिका, टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करती ।)
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१. १८९८ के अधिनियम सं० ४ की धारा ४ द्वारा मूल धारा १२४ क के स्थान पर प्रतिस्थापित । मूल धारा १२४ क को १८७० के अधिनियम सं० २७ की धारा ५ द्वारा अन्त:स्थापित किया गया था ।
२. हर मजेस्टी या शब्दों का विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा लोप किया गया । या क्राउन प्रतिनिधि शब्दों का, जिन्हें भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश १९३७ द्वारा मजेस्टी शब्द के पश्चात अन्त:स्थापित किया गया था, विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा लोप किया गया ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया ।
४. या ब्रिटिश बर्मा शब्दों का, जिन्हे भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश १९३७ द्वारा अन्त:स्थापित किया गया था, विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा लोप किया गया ।
५. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन या उससे किसी लघुतर अवधि के लिए निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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