भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १२१ क :
१.(धारा १२१ द्वारा दण्डनीय अपराधों को करने का षडयंत्र:
(See section 148 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : राज्य के विरुद्ध कतिपय अपराधों को करने के लिए षडयंत्र ।
दण्ड :आजीवन कारावास या दस वर्ष के लिए कारावास, और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय
———-
जो कोई धारा १२१ द्वारा दण्डनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए २.(भारत) के भीतर ३.(***) या बाहर षडयंत्र करेगा, या ४.(केंन्द्रीय सरकार को या किसी ५.(राज्य) की सरकार को ६.(***) आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षडयंत्र करेगा, वह ७.(आजीवन कारावास) से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ८.(और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा) ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के अधीन षडयंत्र गठित होने के लिए वह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप घटित हुआ हो ।)
———
१. १८७० के अधिनियम सं० २७ की धारा ४ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर संशोधित हो कर उपरोक्त रुप में आया ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा या क्वीन की प्रांतों या उनके किसी भाग की प्रभुता से वंचित करना शब्दों का लोप किया गया ।
४. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश १९३७ द्वारा भारत सरकार या किसी स्थानीय सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. विधिध अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा प्रांतीय के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा या बर्मा सरकार शब्दों का लोप किया गया ।
७. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन या उससे किसी लघुतर अवधि के लिए निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
८. १९२१ के अधिनियम सं० १६ की धारा ३ द्वारा अंत:स्थापित ।