Ipc धारा १०५ : संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १०५ :
संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना :
(See section 43 of BNS 2023)
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त(सर्व मान्य) आशंका प्रारंभ होती है ।
संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धत(पुन: प्राप्त करना) हो जाने तक बना रहता है ।
संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ती की मृत्यु या उपहति, या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहाता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का भय बना रहता है ।
संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक अतिचार या रिष्टी (हानी, नुकसान) के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टी(हानी, नुकसान) करता रहता है ।
सपंत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रि के समय गृहभेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह अतिचार होता रहता है ।

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