भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १०३ :
कब संपत्ती की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारित करने तक का होता है :
(See section 41 of BNS 2023)
संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा ९९ में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यू या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न करणे के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है एतस्मिन् पश्चात प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :
पहला – लूट ;
दुसरा – रात्रि के समय गृह भेदन ;
तीसरा – अग्नि द्वारा रिष्टि (नुकसान,हानि) जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रुप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रुप में उपयोग में लाया जाता है ।
चौथा – चोरी, रिष्टि (नुकसान,हानि) या गृह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रुप से यह आशंका कारित हो कि यदि निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा ।
राज्य संशोधन
उत्तरप्रदेश – धारा १०३ में चौथे खण्ड के पश्चात् अग्रलिखित खण्ड जोडा जाएगा, यथा :
पाँचवाँ – आग या ज्वलनशील पदार्थ द्वारा –
क) शासन या किसी स्थानीय प्राधिकारी या शासन के स्वामित्व या नियंत्रण में का कोई निगम(संस्था) के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गई या उपयोग के लिए आशयित किसी संपत्ती को, या
ख) भारतीय रेल अधिनियम, १८८० की धारा ३ के खण्ड(४) में यथा परिभाषित कोई रेलवे या रेलवे स्टोर्स (भंडार)(विधिविरुद्ध कब्जा) अधिनियम, १९५५ में यथा परिभाषित स्टोर्स (भंडार)को या,
ग) मोटर यान अधिनियम १९३९ की धारा २ के खण्ड (३३)(अब मोटार या अधिनियम, १९८८ की धारा २ का खण्ड (४७)) में यथा परिभाषित कोई परिवहन वाहन को रिष्टी(हानी, नुकसान) पहुंचाना ।
(यु.पी.अधिनियम संख्या २९ सन् १९७० की धारा २, दिनांक १७-७-१९७० से प्रभावशील) ।