Ipc धारा १०० : शरीर की निजी (प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १०० :
शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारि करने तक कब होता है :
(See section 38 of BNS 2023)
शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात :
पहला – ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रुप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यू होगा;
दुसरा – ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रुप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;
तीसरा – बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला;
चौथा – प्रकृति विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला;
पाँचवाँ – व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला;
छठा – इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिराध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रुप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुडवाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा ।
१.(सातवां – अम्ल फेंकने या देने का कृत्य, या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रुप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरुप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी ।)
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१. २०१३ का अधिनियम संख्यांक १३ की धारा २ अनुसार अन्त:स्थापित ।

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