Ipc धारा २१६ : ऐसे अपराधी को संश्रय (आसरा) देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकडने का आदेश दिया जा चुका है :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २१६ :
ऐसे अपराधी को संश्रय (आसरा) देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकडने का आदेश दिया जा चुका है :
(See section 253 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : ऐसे अपराधी को संश्रय देना जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकडने का आदेश दिया जा चुका है यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय है ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि आजीवन कारावास या दस वर्ष के लिए कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :जुर्माने सहित या रहित, तीन वर्ष के लिए कारावास ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि एक वर्ष के लिए, न की दस वर्ष के लिए, कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :उस दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग का कारावास और उस भांति का कारावास, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या जर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ती उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे,
अथवा जब कभी कोई लोक सेवक ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ती को पकडने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकडे जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ती को पकडा जाना निर्वारित (रोकना) करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित प्रकार से दण्डित किया जाएगा, अर्थात –
यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो :
यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ती अभिरक्षा में था या पकडे जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ;
यदि वह अपराध आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो :
यदि वह अपराध १.(आजीवन कारावास) से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी;
और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दण्डनीय हो, जो एक वर्ष तक का, न की दस वर्ष तक का हो सकता हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों सें, दण्डित किया जाएगा ।
२.(इस धारा में अपराध के अन्तर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ती ३.(भारत) से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह ३.(भारत) में उसका दोषी होता, तो अपराध के रुप में दण्डनीय होता और जिसके लिए वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विधि के अधीन ४.(***) या अन्यथा ३.(भारत) में पकडे जाने या अभिरक्षा कें निरुद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और हर ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, जैसे मानो अभियुक्त व्यक्ती ३.(भारत) में उसका दोषी हुआ था ।
अपवाद :
इस उपबंध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकडे जाने वाले व्यक्ती के पति या पत्नी द्वारा हो ।
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १८८६ के अधिनियम सं० १० की धारा २३ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा या फ्यूजिटिव आफेन्डरस ऐक्ट १८८१ के अधीन शब्दों का लोप किया गया ।

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