भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २१४ :
अपराधी के प्रतिच्छादन (बचने) के प्रतिफलस्वरुप उपहार की प्रस्थापना या सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन (बहाल करना) :
(See section 251 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरुप उपहार की प्रस्थापना या सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन, यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय है ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि आजीवन कारावास या दस वर्ष के लिए कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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यदि दस वर्ष से कम के लिए कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :उस दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग का कारावास और उस भांति का कारावास, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या जर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी व्यक्ती को कोई अपराध उस व्यक्ती द्वारा छिपाए जाने के लिए या उस व्यक्ती द्वार किसी व्यक्ती को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित(बचाना) किए जाने के लिए या उस व्यक्ती द्वारा किसी व्यक्ती को वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरुप कोई पारितोषण देगा या दिलाएगा या देने या दिलाने की प्रस्थापना करार करेगा, या १.(कोई सम्पत्ति प्रत्यावर्तित (बहाल) करेगा या कराएगा) ;
यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो :
यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ;
यदि वह आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो :
और यदि वह अपराध २.(आजीवन कारावास) से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय होगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ;
और यदि वह अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुमाने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
३.(अपवाद :
धारा २१३ और धारा २१४ के उपबंधो का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसके कि अपराध का शमन विधिपूर्वक किया जा सकता है ।)
४.(***)
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१. १९५३ के अधिनियम सं० ४२ की धारा ४ और तीसरी अनुसूची द्वारा के प्रत्यावर्तित करने या कराने के लिए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १८८२ के अधिनियम सं० ८ की धारा ६ द्वारा मूल अपवाद के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४ १८८२ के अधिनियम सं० १० की धारा २ और अनुसूची १ द्वारा दृष्टांत निरसित ।