Ipc धारा १९२ : मिथ्या साक्ष गढना (रचना) :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १९२ :
मिथ्या साक्ष गढना (रचना) :
(See section 228 of BNS 2023)
जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्वा में लाता है, या १.(किसी पुस्तक या अभिलेख में या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्टि (दाखिल) करता है, या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट करने वाली कोइ दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है,) कि ऐसी परिस्थिती, मिथ्या प्रविष्टि (दाखिल) या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में, जो लोक सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि (दाखिल) या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ती, जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है, ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के संबंध में गलत राय बनाए, वह मिथ्या साक्ष गढता (रचता) है, यह कहा जाता है ।
दृष्टांत :
क) (क) एक बक्से में, जो (य) का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्से में पाए जाएं, और इस परिस्थिति से (य) चोरी के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाए । (क) ने मिथ्या साक्ष्य गढा है ।
ख) (क) अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रुप में काम में लाई जाए । (क) ने मिथ्या साक्ष्य गढा है ।
ग) (य) को एक आपराधिक षडयंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से (क) एक पत्र (य) के हस्तलेख की अनुकृति करके लिखता है, जिससे यह तात्पर्यित है कि (य) ने उसे ऐसे आपराधिक षडयंत्र के सह अपराधी को संबोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रख देता है, जिसके संबंध में वह यह जानता है कि पुलिस आफिसर संभाव्यत: उस स्थान की तलाशी लेंगे । (क) ने मिथ्या साक्ष्य गढा है ।
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१. २००० के अधिनियम सं० २१ की धारा ९१ और पहली अनुसूची द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित (१७-१०-२००० से) ।

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