भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १७४ :
लोक सेवक का आदेश (समन) न मानकर गैर हाजिर रहना :
(See section 208 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : किसी स्थान में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने को वैध आदेश न मानना या वहां से प्राधिकार के बिना चला जाना ।
दण्ड :एक मास के लिए सादा कारावास, या पाँच सो रुपए का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि आदेश न्यायालय में वैयक्तिक हाजिरी आदि अपेक्षित करता है ।
दण्ड :छह मास के लिए सादा कारावास, या एक हजार रुपए का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना या आदेश या उद्घोषणा के पालन में , जिसे ऐसे लोक सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रुप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हजिर होने के लिए वैध रुप से आबद्ध (बंधा हुआ) होते हुए,
उस स्थान या समय पर हाजिर होने का साशय लोप करेगा, या उस स्थानसे, जहां हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाएगा, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता,
वह सादा कारावास से दण्डनीय होगा, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा ;
अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उदघोषणा किसी न्यायालय में स्वं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से दण्डनीय होगा, जिसकी अवधी छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से , दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत :
क) (क) कलकत्ता १.(उच्च न्यायालय) द्वारा निकाले गए सपीना (उपस्थिति – पत्र / शास्तिलेख) के पालन में उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात (उपस्थित होना) होने के लिए वैध रुप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है, (क) ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।
ख) (क) २.(जिला न्यायाधीश) द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस २.(जिला न्यायाधीश) के समक्ष साक्षी के रुप में उपसंजात होने के लिए वैध रुप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोक करता है । (क) ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।
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१. विधि अनुकूलन आदो १९५० द्वारा उच्चतम न्यायालय के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा जिला न्यायाधीश के स्थान पर प्रतिस्थापित ।