भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ११८ :
मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना :
(See section 58 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना, यदि अपराध कर दिया जाता है ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :इसके अनुसार कि दुष्प्रेरित अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय है ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :उस न्यायालय द्वारा दुष्प्रेरित अपराध विचारणीय है ।
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अपराध : यदी अपराध नहीं किया जाता है ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :इसके अनुसार कि दुष्प्रेरित अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय है ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :उस न्यायालय द्वारा दुष्प्रेरित अपराध विचारणीय है ।
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जो कोई मृत्यु या १.(आजीवन कारावास) से दण्डनीय अपराध का किया जाना सुकर बनाने के आशय से या सम्भाव्यत: तदद्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,
ऐसे अपराध के किए जाने की २.(परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा गूढलेखन के प्रयोग से या जानकारी छुपाने के किसी अन्य उपाय द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा) या ऐसी परिकल्पना के बारें में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,
यदि अपराध कर दिया जाए – यदि अपराध नहीं किया जाए :
यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और दोनों दशाओं में से हर एक में जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत :
(क), यह जानते हुए कि (ख) स्थान पर डकैती पडने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि डकैती (ग) स्थान पर जो विपरीत दिशा में है, पडने वाली है और इस आशय से कि तद्द्वारा उस अपराध का किया जाना सुकर बनाए मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है । डकैती परिकल्पना के अनुसरण में (ख) स्थान पर पडती है । (क) इस धारा के अधीन दंडनीय है ।
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्तापित ।
२. सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम २००८ (सं १० सन २००९) की धारा ५१ (ग) द्वारा परिकल्पना के अस्तित्व को किसी, कार्य या अवैध लोप द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित (२७-१०-२००९ से प्रभावशील)।