Hma 1955 धारा ३ : परिभाषाएं :

हिंदू विवाह अधिनियम १९५५
धारा ३ :
परिभाषाएं :
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –
(a)(क) रुढि और प्रथा, पद ऐसे किसी भी नियम का संज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुंब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो :
परन्तु यह तब जब कि वह नियम निश्चित हो, और अयुक्तियुक्त या लोकनीति के विरुद्ध न हो: तथा
परंतु यह और भी कि ऐसे नियम की दशा में जो एक कुटुंब को ही लागू हो, उसकी निरंतरता उस कुटुंब द्वारा बंद न कर दी गई हो;
(b)(ख) जिला न्यायालय से अभिप्रेत है ऐसे किसी क्षेत्र में, जिसके लिए कोई नगर सिविल न्यायालय हो, वह न्यायालय और अन्य किसी क्षेत्र में आरंभिक अधिकारिता का प्रधान सिविल न्यायालय तथा इसके अंतर्गत ऐसा कोई भी अन्य सिविल न्यायालय आता है जिसे राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम में व्यवहृत बातों के बारे में अधिकारितायुक्त विनिर्दिष्ट कर दे;
(c)(ग) पूर्ण रक्त और अर्ध रक्त – कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे से पूर्ण रक्त से संबंधित तब कहे जाते हैं जब कि वे एक ही पूर्वज से एक ही पत्नी द्वारा अवजनित हों और अर्ध रक्त से तब जब कि वह एक ही पूर्वज से किन्तु भिन्न पत्नियों द्वारा अवजनित हों;
(d)(घ) एकोदर रक्त – दो व्यक्ति एक से एकोदर रक्त से संबंधित तब कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वजा से किन्तु भिन्न पतियों द्वारा अवजनित हों।
स्पष्टीकरण :
खंड (ग) और (घ) में पूर्वज के अंतर्गत पिता और पूर्वजा के अंतर्गत माता आती है;
(e)(ङ) विहित से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित;
(f)(च) (एक) सपिंड नातेदारी जब निर्देश किसी व्यक्ति के प्रति हो तो, माता के माध्यम से उसकी ऊपरली ओर की परंपरा में तीसरी पीढ़ी तक (जिसके अंतर्गत तीसरी पीढ़ी भी आती है) और पिता के माध्यम से उसकी ऊपरली ओर की परंपरा में पांचवीं पीढ़ी तक (जिसके अंतर्गत पांचवीं पीढ़ी भी आती है), जाती है, हर एक दशा में वंश परंपरा सम्पृक्त व्यक्ति
से, जिसे पहले पीढ़ी का गिना जाएगा, ऊपर की ओर चलेगी;
(दो) दो व्यक्ति एक दूसरे के सपिंड तब कहे जाते हैं जबकि या तो एक उनमें से दूसरे का सपिंड नातेदारी की सीमाओं के भीतर पूर्वपुरुष हो या जब कि उनका ऐसा कोई एक ही पारंपरिक पूर्वपुरुष, जो, निर्देश उनमें से जिस किसी के भी प्रति हो, उससे सपिंड नातेदारी की सीमाओं के भीतर हो;
(g)(छ) प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियां – दो व्यक्ति प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर कहे जाते हैं
(एक) यदि एक उनमें से दूसरे का पारंपारिक पूर्वपुरुष हो; या
(दो) यदि एक उनमें से दूसरे के पारंपरिक पूर्वपुरुष या वंशज की पत्नी या पति रहा हो, या
(तीन) यदि एक उनमें से दूसरे के भाई की या पिता अथवा माता के भाई की, या पितामह अथवा पितामही के भाई की या मातामह अथवा मातामही के भाई की पत्नी रही हो; या
(चार) यदि वे भाई और बहिन, ताया, चाचा और भतीजी, मामा और भांजी, फूफी और भतीजा, मौसी और भांजा या भाई-बहिन के अपत्य, भाई-भाई के अपत्य अथवा बहिन-बहिन के अपत्य हों ।
स्पष्टीकरण :
खण्ड (च) और (छ) के प्रयोजनों के लिए नातेदारी के अन्तर्गत आती है –
(एक) पूर्ण रक्त की नातेदारी, तथैव अर्ध या एकोदर रक्त की नातेदारी;
(दो) धर्मज रक्त की नातेदारी, तथैव अधर्मज रक्त की नातेदारी;
(तीन) रक्तजन्य नातेदारी, तथैव दत्तक नातेदारी;
और उन खंडों में नातेदारी संबंधी सभी पदों का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा ।

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