भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा ५८ :
द्वितीयक साक्ष्य :
द्वितीयक साक्ष्य उसके अन्तर्गत आते है –
एक) एतस्मिन पश्चात अन्तर्विष्ट उपबंधो के अधीन दी हुई प्रमाणित प्रतियाँ;
दो) मूल से ऐसी यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा, जो प्रक्रियाएँ स्वयं ही प्रति की शुद्धता सुनिश्चित करती है, बनाई गई प्रतियाँ तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की हुई प्रतिलिपियाँ;
तीन) मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियाँ;
चार) उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया है, दस्तावजों के प्रतिलेख;
पांच) किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु का उस व्यक्ति द्वारा, जिसने स्वयं उसे देखा है, दिया हुआ मौखिक वृत्तांत ।
छह) मौखिक स्वीकृतियां;
सात) लिखित स्वीकृतियां;
आठ) किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य, जिसने किसी दस्तावेज की जांच की है, जिसके मूल में अनेक लेखे या अन्य दस्तावेज अंतर्विष्ट है, जिनकी सुविधाजनक रुप से न्यायालय में जांच नहीं की जा सकती है और जो ऐसे दस्तावेजों की जांच करने में कुशल है ।
दृष्टांत :
(a) क) किसी मूल का फोटोचित्र, यद्यपि दोनों की तुलना न की गई हो, तथापि यदि यह साबित किया जाता है कि फोटो चित्रित वस्तु मूल थी, उस मूल की अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य है ।
(b) ख) किसी पत्र की वह प्रति, जिसकी तुलना उस पत्र की, उस प्रति से कर ली गई है जो प्रतिलिपि यंत्र द्वारा तैयार की गई है, उस पत्र की अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य है, यदि यह दर्शित कर दिया जाता है कि प्रतिलिपि यंत्र द्वारा तैयार की गई प्रति मूल से बनाई गई थी ।
(c) ग) प्रति की नकल करके तैयार की गई, किन्तु तत्पश्चात् मूल से तुलना की हुई प्रतिलिपि द्वितीयक साक्ष्य है, किन्तु इस प्रकार तुलना नहीं की हुई प्रति मूल का द्वितीयक साक्ष्य नहीं है, यद्यपि उस प्रति की, जिससे वह नकल की गई है, मूल से तुलना की गई थी ।
(d) घ) न तो मूल से तुलनाकृत प्रति का मौखिक वृत्तांत और न मूल के किसी फोटोचित्र या यंत्रकृत प्रति का मौखिक वृत्तांत मूल का द्वितीयक साक्ष्य है ।