Bsa धारा ५२ : वे तथ्य, जिनकी न्यायिक अवेक्षा (विचारण /ज्ञान या संज्ञान ) न्यायालय को करनी होगी :

भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा ५२ :
वे तथ्य, जिनकी न्यायिक अवेक्षा (विचारण /ज्ञान या संज्ञान ) न्यायालय को करनी होगी :
१) न्यायालय निम्नलिखित तथ्यों की न्यायिक अवेक्षा करेगा, अर्थात् :-
(a) क) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त समस्त विधियाँ, जिसके अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र से बाहर प्रचालन करने वाली विधियां सम्मिलित है;
(b) ख) भारत द्वारा किसी देश या देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार या अभिसमय या अंतर्राष्ट्रीय संगमों या अन्य निकायों में भारत द्वारा किए गए विनिश्चय;
(c) ग) भारत की संविधान सभा, भारत की संसद् और राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही का अनुक्रम;
(d) घ) सभी न्यायालयों और अधिकरणों की मुद्रा;
(e) ङ) नावधिकरण और समुद्रिय अधिकारिता वाले न्यायालयों की और नोटरिज पब्लिक की मुद्राएँ और वे सब मुद्राएँ, जिनका कोई व्यक्ति संविधान या संसद या राज्य विधानमंडल के किसी अधिनियम या भारत में विधि का बल रखने वाले अधिनियम या विनियम द्वारा उपयोग करने के लिए प्राधिकृत है;
(f) च) किसी राज्य में किसी लोक पद पर तत्समय आरुढ व्यक्तियों के कोई पदारेहण, नाम, उपाधियाँ, कृत्य और हस्ताक्षर, यदि ऐसे पद पर उनकी नियुक्ति का तथ्य किसी शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किया गया हो;
(g) छ) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हर देश या संप्रभु का अस्तित्व, उपाधि और राष्ट्रीय ध्वज;
(h) ज) समय के प्रभाग, पृथ्वी के भौगोलिक प्रभाग तथा शासकीय राजपत्र में अधिसूचित लोक उत्सव, उपवास, और अवकाश-दिन;
(i) झ) भारत का राज्यक्षेत्र;
(j) ञ) भारत सरकार और अन्य किसी देश या व्यक्तियों के निकाय के बीच संघर्ष का प्रारंभ, चालू रहना और पर्यवसान (समाप्ती);
(k) ट) न्यायालय के सदस्यों और ऑफिसरों के तथा उनके उप-पदियों और अधीनस्थ ऑफिसरों और सहायकों के और उसकी आदेशिकाओं के निष्पादन में कार्य करने वाले सब ऑफिसरों के भी, तथा सब अधिवक्ताओं और सक्षम उपसंजात होने या कार्य करने के लिए किसी विधि द्वारा प्राधिकृत अन्य व्यक्तियों के नाम;
(l) ठ) भूमि या समुद्र पर मार्ग का नियम ।
२) उपधारा (१) में निर्दिष्ट मामलों में, तथा लोक-इतिहास, साहित्य, विज्ञान कला के सब विषयों में भी न्यायालय समुपयुक्त निर्देश पुस्तकों या दस्तावजों की सहायता ले सकेगा और यदि न्यायालय से किसी तथ्य की न्यायिक अवेक्षा करने की किसी व्यक्ति द्वारा प्रार्थना की जाती है, तो यदि और जब तक वह व्यक्ति कोई ऐसी पुस्तक या दस्तावज पेन न कर दे, जिसे ऐसा न्यायालय अपने को ऐसा करने को समर्थ बनाने के लिए आवश्यक समझता है, न्यायालय ऐसा करने से इंकार कर सकेगा ।

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