भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा १५८ :
साक्षी की विश्वसनीयता पर अधिक्षेप :
किसी साक्षी की विश्वसनीयता पर प्रतिपक्षी द्वारा, या न्यायालय की सम्मति से उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे बुलाया है, निम्नलिखित प्रकारों से अधिक्षेप किया जा सकेगा :-
(a) क) उन व्यक्तियों के साक्ष्य द्वारा, जो यह परिसाक्ष्य देते है कि साक्षी के बारे में अपने ज्ञान के आधार पर, वे उसे विश्वसनीयता का अपात्र समझते है;
(b) ख) यह साबित किए जाने द्वारा कि साक्षी को रिश्वत दी गई है या उसने रिश्वत की प्रस्थापना १.(प्रतिगृहीत कर ली है) या उसे अपना साक्ष्य देने के लिए कोई अन्य भ्रष्ट उत्प्रेरणा मिली है;
(c) ग) उसके साक्ष्य के किसी ऐसे भाग से, जिसका खण्डन किया जा सकता है, असंगत पिछले कथनों को साबित करने द्वारा;
स्पष्टीकरण :
कोई साक्षी जो किसी अन्य साक्षी को विश्वसनीयता के लिए अपात्र घोषित करता है, अपने से की गई मुख्य परीक्षा में अपने विश्वास के कारणों को चाहे न बताए, किन्तु प्रतिपरीक्षा में उससे उनके कारणों को पूछा जा सकेगा, और उन उत्तरों का, जिन्हे वह देता है, खण्डन नहीं किया जा सकता, तथापि यदि वे मिथ्या हों, तो तत्पश्चात् उस पर मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
दृष्टांत :
(a) क) (बी) को बेचे गए और परिदान किए गए माल के मूल्य के लिए (बी) पर (ऐ) वाद लाता है । (सी) कहता है कि उसने (बी) को माल का परिदान किया । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि किसी पूर्व अवसर पर उसने कहा था कि उसने उस माल का परिदान (बी) को नहीं किया था । यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
(b) बी) (बी) की हत्या के लिए (ए) पर अभ्यारोप लगाया गया है । (सी) कहता है कि (बी) ने मरते समय घोषित किया था कि (ऐ) ने (बी) को यह घाव किया था, जिससे वह मर गया । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि किसी पूर्व अवसर पर (सी) ने कहा था कि (बी) ने मृत्यु के समय यह घोषित नहीं किया कि (ऐ) ने (बी) को वह घाव नहीं किया था, जिससे उसकी मृत्यु हुई । यह साक्ष्य ग्राह्य है ।