भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा १५६ :
सत्यवादिता परखने के प्रश्नों के उत्तरों का खण्डन करने के लिए साक्ष्य का अपवर्जन :
जबकि किसी साक्षी से ऐसा कोई प्रश्न पूछा गया हो, जो जाँच से केवल वहीं तक सुसंगत है जहाँ तक कि वह उसके शील को क्षति पहुंचाकर उसकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाने की प्रवृत्ति रखता है, और उसने उसका उत्तर दे दिया हो, तब उसका खण्डन करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया जाएगा; किन्तु यदि वह मिथ्या उत्तर देता है, तो तत्पश्चात् उस पर मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
अपवाद १:
यदि किसी साक्षी से पूछा जाए कि क्या वह तत्पूर्व किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ था और वह उसका प्रत्याख्यान (इन्कार / अस्वीकार) करे, तो उसकी पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
अपवाद २ :
यदि किसी साक्षी से उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखने वाला कोई प्रश्न पूछा जाए और वह सुझाए हुए तथ्यों के प्रत्याख्यान द्वारा, उसका उत्तर देता है, तो उसका खण्डन किया जा सकेगा ।
दृष्टांत :
(a) क) किसी निम्नांकक (हमीदार, जो कोई बीमा व्यवसाय करता है) के विरुद्ध एक दावे का प्रतिरोध कपट के आधार पर किया जाता है । दावेदार से पूछा जाता है कि क्या उसने एक पिछले संव्यवहार में कपटपूर्ण दावा नहीं किया था । वह इसका प्रत्याख्यान (इन्कार) करता है । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि उसने ऐसा दावा सचमुच किया था । यह साक्ष्य अग्राह्य है ।
(b) ख) किसी साक्षी से यह पुछा जाता है कि क्या वह किसी ओहदे से बेईमानी के लिए पदच्युत (पद से हटाना) नहीं किया गया था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है । यह दर्शित करने के लिए कि वह बेईमानी के लिए पदच्युत किया गया था साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है । यह साक्ष्य ग्राह्य नहीं है ।
(c) ग) (ऐ) प्रतिज्ञात करता है कि उसने अमुक दिन (बी) को गोवा में देखा । (ऐ) से पुछा जाता है कि क्या वह स्वयं उस दिन वाराणसी में नहीं था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है । यह दर्शित करने के लिए कि (ऐ) उस दिन वाराणसी में था साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है । यह साक्ष्य ग्राह्य है, इस नाते नहीं कि वह (ऐ) का एक तथ्य के बारे में खण्डन करता है, जो उसकी विश्वसनीयता पर प्रभाव डालता है, वरन् इस नाते कि वह इस अभिकथित तथ्य का खण्डन करता है कि (बी) प्रश्नगत दिन गोवा में देखा गया था । इनमें से हर मामले में साक्षी पर, यदि उसका प्रत्याख्यान मिथ्या था, मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
(d) घ) (ऐ) से पुछा जाता है कि क्या उसके कुटुम्ब और बी के, जिसके विरुद्ध वह साक्ष्य देता है, कुटुम्ब में कुल बैर नहीं रहा था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है । उसका खण्डन इस आधार पर किया जा सकेगा कि यह प्रश्न उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखता है ।