भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा ३७ :
धाराओं ३४, ३५ और ३६ में वर्णित से भिन्न निर्णय आदि कब सुसंगत है :
धाराएँ ३४, ३५ और ३६ में वर्णित भिन्न निर्णय, आदेश या डिक्रियाँ विसंगत है जब तक कि ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व विवाद्यक तथ्य न हो या वह इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध के अन्तर्गत सुसंगत न हो ।
दृष्टांत :
(a) क) (ऐ) और (बी) किसी अपमान लेख के लिए जो उनमें से हर एक पर लांछन लगाता है, (सी) पर पृथक्-पृथक् वाद लाते है । हर एक मामले में (सी) कहता है कि वह बात, जिसका अपमान-लेखीय होना अभिकथित है, सत्य है और परिस्थितियाँ ऐसी है कि वह अधिसंभाव्यत: या तो हर एक मामलें में सत्य है या किसी में नहीं । (सी) के विरुद्ध (ऐ) इस आधार पर कि (सी) अपना न्यायोचित साबित करने में असफल रहा नुकसानी की डिक्री अभिप्राप्त करता है । यह तथ्य (बी) और सी के बीच विसंगत है ।
(b) ख)(बी) का अभियोजन (ऐ) इसलिए करता है कि उसने (ऐ) की गाय चुराई है । (बी) दोषसिद्ध किया जाता है । तत्पश्चात (ऐ) उस गाय के लिए जिसे (बी) ने दोषसिद्ध होने से पूर्व (सी) को बेच दिया था, (सी) पर वाद लाता है । (बी) के विरुद्ध वह निर्णय (ऐ) और (सी) के बीच विसंगत है ।
(c) ग) (ऐ) ने (बी) के विरुद्ध भूमि के कब्जे की डिक्रि अभिप्राप्त की है । (बी) का पुत्र (सी) परिणामस्वरुप (ऐ) की हत्या करता है । उस निर्णय का अस्तित्व अपराध का हेतु दर्शित करने के नाते सुसंगत है ।
(d) घ) (ऐ) पर चोरी का और चोरी के लिए पूर्व दोषसिद्धि का आरोप है । पूर्व दोषसिद्धि विवाद्यक तथ्य होने के नाते सुसंगत है ।
(e) ङ)(बी) की हत्या के लिए (ऐ) विचारीत किया जाता है । यह तथ्य कि (बी) ने (ऐ) पर अपमान लेख के लिए अभियोजन चलाया था और (ऐ) दोषसिद्ध और दण्डित किया गया था, धारा ८ के अधीन विवाद्यक तथ्य का हेतु दर्शित करने के नाते सुसंगत है ।