भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ८५ :
फरार व्यक्ति की सम्पति की कुर्की (जब्ती) :
१) धारा ८४ के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएँगे उद्घोषणा जारी किए जाने के पश्चात् किसी भी समय, उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी सम्पत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है :
परन्तु यदि उद्घोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति जिसके सम्बन्ध में उद्घोषणा निकाली जाती है –
(a) क) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है, अथवा
(b) ख) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारीता से हटाने वाला है,
तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ ही साथ संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है ।
२) ऐसा आदेश उस जिले में, जिसमें वह दिया गया है, उस व्यक्ति की किसी भी संपत्ति की कुर्की प्राधिकृत करेगा और उस जिले के बाहर की उस व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की तब प्राधिकृत करेगा जब वह उस जिला मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसके जिले में ऐसी संपत्ति स्थित है, पृष्ठांकित कर दिया जाए ।
३) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है,ऋण या अन्य जंगम संपत्ति हो, तो इस धारा के अधीन कुर्की –
(a) क) अभिग्रहण (जब्ती) द्वारा की जाएगी; अथवा
(b) ख) रिसीवर (पानेवाला) की नियुक्ती द्वारा की जाएगी ; अथवा
(c) ग) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस सम्पत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी; अथवा
(d) घ) इस रीतियों में से सब या किन्हीं दो से कि जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे ।
४) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है और अन्य सब दशाओं में –
(a) क) कब्जा लेकर की जाएगी; अथवा
(b) ख) रिसीवर की नियुक्ती द्वारा की जाएगी; अथवा
(c) ग) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का किराया देने या उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी; अथवा
(d) घ) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे ।
५) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, जीवधन है या विनश्वर प्रकृति की है तो यदि न्यायालय समीचीन समझता है तो वह उसके तुरन्त विक्रय का आदेश दे सकता है और ऐसी दशा में विक्रय के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे ।
६) इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्तव्य और दायित्व वे ही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ (१९०८ का ५) के अधीन नियुक्त रिसीवर के होते है ।