Bnss धारा ४९१ : प्रक्रिया, जब बंधपत्र समपऱ्हत कर लिया जाता है :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४९१ :
प्रक्रिया, जब बंधपत्र समपऱ्हत कर लिया जाता है :
१) जहाँ-
(a) क) इस संहिता के अधीन कोई बंधपत्र किसी न्यायालय के समक्ष हाजिर होने या संपत्ति पेश करने के लिए है और उस न्यायालय या किसी ऐसे न्यायालय को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया गया है, समाधानप्रद रुप में यह साबित कर दिया जाता है कि बन्धपत्र समपऱ्हत हो चुका है; या
(b) ख) इस संहिता के अधीन किसी अन्य बन्धपत्र की बाबत उस न्यायालय को, जिसके द्वारा बंधपत्र लिया गया था, या ऐसे किसी न्यायालय को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया गया है, या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के किसी न्यायालय को, समाधानप्रद रुप में यह साबित कर दिया जाता है कि बंधपत्र समपऱ्हत हो चुका है,
वहाँ न्यायालय ऐसे सबूत के आधारों को अभिलिखित करेगा और ऐसे बंधपत्र से आबद्ध किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसकी शास्ति दे या कारण दर्शित करे कि वह क्यों नहीं दी जाती चाहिए ।
स्पष्टीकरण :
न्यायालय के समक्ष हाजिर होने या संपत्ति पेश करने के लिए बंधपत्र से आबद्ध किसी शर्त का यह अर्थ लगावा जाएगा कि उसके अन्तर्गत ऐसे न्यायालय के समक्ष जिसको तत्पश्चात् मामला अन्तरित किया जाता है, यथास्थिति, हाजिर होने या संपत्ति पेश करने की शर्त भी है ।
२) यदि पर्याप्त कारण दर्शित नहीं किया जाता है और शास्ति नहीं दी जाती है तो न्यायालय उसकी वसूली के लिए अग्रसर हा सकेगा मानो वह शास्ति इस संहिता के अधीन उसके द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो :
परन्तु जहाँ ऐसी शास्ति नहीं दी जाती है और वह पूर्वोक्त रुप में वसूल नही की जा सकती है वहाँ, प्रतिभू के रुप में इस प्रकार आबद्ध व्यक्ति, उस न्यायालय के आदेश से, जो शास्ति की वसूली का आदेश करता है, सिविल कारागार में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा ।
३) न्यायालय , ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात्, उल्लिखित शास्ती के किसी प्रभाग का परिहार और केवल भाग के संदाय का प्रवर्तन कर सकता है ।
४) जहाँ बंधपत्र के लिए कोई प्रतिभू बंधपत्र का समपहरण होने के पूर्व मर जाता है वहाँ उसकी संपदा, बंधपत्र के बारे में सारे दायित्व से उन्मोचित हो जाएगी ।
५) जहाँ कोई व्यक्ति, जिसने धारा १२५ या धारा १३६ या धारा ४०१ के अधीन प्रतिभूति दी है, किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, जिसे करना उसके बंधपत्र की या उसके बंधपत्र के बदले में धारा ४९४ के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों का भंग होता है वहाँ उस न्यायालय के निर्णय की, जिसके द्वारा वह ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया था, प्रमाणित प्रतिलिपि उसके प्रतिभू या प्रतिभओं के विरुद्ध इस धारा के अधीन सब कार्यवाहियों में साक्ष्य के रुप में उपयोग में लाई जा सकती है और यदि ऐसी प्रमाणित प्रतिलिपि इस प्रकार उपयोग में लाई जाती है तो, जब तक प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसा अपराध उसके द्वारा किया गया था ।

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