भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४८३ :
जमानत के बारे में उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की विशेष शक्तियाँ :
१) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह निदेश दे सकता है कि –
(a) क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी अपराध का अभियोग है और जो अभिरक्षा में है, जमानत पर छोड दिया जाए और यदि अपराध धारा ४८० की उपधारा (३) में विनिर्दिष्ट प्रकार का है, तो वह ऐसी कोई शर्त, जिसे वह उस उपधारा में वर्णित प्रयोजनों के लिए आवश्यक समझे, अधिरोपित कर सकता है;
(b) ख) किसी व्यक्ति को जमानत पर छोडने के समय मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित कोई शर्त अपास्त या उपंतरित कर दी जाए :
परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं है, आजीवन कारावास से दण्डनीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिए आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को उस दशा के सिवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएँगे यह राय है कि ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है :
परन्तु यह और कि उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६५ धारा ७० की उपधारा (२) के अधीन अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिए आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को इस प्रकार आवेदन की सूचना प्राप्त होने तारीख से पन्द्रह दिनों की अवधि के भीतर देगा ।
२) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६५ या धारा ७० की उपधारा (२) के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति के जमानत के आवेदन के विचारण के समय आवेदक (सूचनार्थी) या सूचनार्थी की तरफसे अधिकृत व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य होगी ।
३) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोडा जा चुका है, गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है ।