भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४८२ :
गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निदेश :
१) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है, और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड दिया जाए ।
२) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (१) के अधीन निदेश देता है तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठिक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित भी है –
एक) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
दो) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
तीन) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोडेगा;
चार) ऐसी अन्य शर्तें जो धारा ४८० की उपधारा (३) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती है, मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गई है ।
३) यदि तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड दिया जाएगा तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारण्ट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (१) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरुप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा ।
४) भारतीय न्याय संहिता २०२३ के धारा ६५ या धारा ७० की उपधारा (२) के अधीन अपराध करने का किसी व्यक्ती को आरोपित किया हो उस व्यक्तिको गिरफ्तार करेने के सम्बन्ध में यह धारा लागू नहीं होगी ।