भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय ३५ :
जमानत और बंधपत्रों के बारे में उपबंध :
धारा ४७८ :
किन मामलों में जमानत ली जाएगी :
१) जब अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से भिन्न कोई व्यक्ति पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है और जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है उस बीच किसी समय, या ऐसे न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम में, जमानत देने के लिए तैयार है तब ऐसा व्यक्ति जमानत पर छोड दिया जाएगा :
परन्तु यदि ऐसा अधिकारी या न्यायालय ठीक समझते है तो वह ऐसे व्यक्ति से जमानत लेने के बजाय उसे इसमें इसके पश्चात् उपबन्धित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए बन्ध-पत्र निष्पादित करने पर उन्मोचित कर सकेगा और यदि ऐसा व्यक्ति निर्धन है और जमानत देने में असमर्थ है, तो उसे ऐसे उन्मोचित करेगा ।
स्पष्टीकरण :
जहाँ कोई व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी की तारीक के एक सप्ताह के भीतर जमानत बंधपत्र देने में असमर्थ है वहाँ अधिकारी या न्यायालय के लिए यह उपधारणा करने का पर्याप्त आधार होगा कि वह इस परन्तुक के प्रयोजनों के लिए निर्धन व्यक्ति है :
परन्तु यह और की इस धारा की कोई बात धारा १३५ की उपधारा (३) या धारा ४९२ के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएगी ।
२) उपधारा (१) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ कोई व्यक्ति, हाजिरी के समय और स्थान के बारे में बंधपत्र या जमानतपत्र की शर्तों का अनुपालन करने में असफल रहता है वहाँ न्यायालय उसे जब वह उसी मामले में किसी पश्चात्वर्ती अवसर पर न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या अभिरक्षा में लाया जाता है, जमानत पर छोडने से इंकार कर सकता है और ऐसी किसी इंकारी का, ऐसे बंधपत्र या जमानतपत्र से आबद्ध किसी व्यक्ति से धारा ४९१ के अधीन उसकी शास्ति देने की अपेक्षा करने की न्यायालय की शक्तियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा ।