भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४३० :
अपील लम्बित रहने तक दण्डादेश का निलम्बन; अपीलार्थी का जमानत पर छोडा जाना :
१) अपील न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो उसके द्वारा अभिलिखित किए जाएँगे, आदेश दे सकता है कि उस दण्डादेश या आदेश का निष्पादन, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा की गई अपील के लंबित रहने तक निलंबित किया जाए और यदि वह व्यक्ति परिरोध में है तो यह भी आदेश दे सकता है कि उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपत्र या जमानतपत्र पर छोड दिया जाए :
परन्तु अपील न्यायालय ऐसे दोषसिद्धी व्यक्ति को जो मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जमानत पर या उसके अपने बन्धपत्र या जमानतपत्र पर छोडने से पूर्व, लोक अभियोजक को ऐसे छोडन के विरुद्ध लिखित में कारण दर्शाने का अवसर देगा :
परन्तु यह और कि ऐसे मामलों में जहाँ किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोडा जाता है वहाँ लोक अभियोजक जमानत रद्द किए जाने के लिए आवेदन फाइल कर सकेगा ।
२) अपील न्यायालय को इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उच्च न्यायालय भी किसी ऐसी अपील के मामले में कर सकता है जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा उसके अधीनस्थ न्यायालय में की गई है ।
३) जहाँ दोषसिद्ध व्यक्ति ऐसे न्यायालय को जिसके द्वारा वह दोषसिद्ध किया गया है यह समाधान कर देता है कि वह अपील प्रस्तुत करना चाहता है वहाँ वह न्यायालय-
एक)उस दशा में जब ऐसा व्यक्ति, जमानत पर होते हुए, तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है, या
दो) उस दशा में जब वह अपराध, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति दोषसिद्ध किया गया है जमानतीय है और वह जमानत पर है,
यह आदेश देगा कि दोषसिद्ध व्यक्ति को इतनी अवधि के लिए जितनी से अपील प्रस्तुत करने और उपधारा (१) के अधीन अपील न्यायालय के आदेश प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा जमानत पर छोड दिया जाए जब तक कि जमानत से इंकार करने के विशेष कारण न हों और जब तक वह ऐसे जमानत पर छूटा रहता है तब तक कारावास का दण्डादेश निलम्बित समझा जाएगा ।
४) जब अंततोगत्वा अपीलार्थी को किसी अवधि के कारावास या आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया जाता है, तब वह समय, जिसके दौरान वह ऐसे छूटा रहता है, उस अवधि की संगणना करने में, जिसके लिए उसे ऐसा दण्डादेश दिया गया है, हिसाब में नहीं लिया जाएगा ।