भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय २९ :
निर्णय :
धारा ३९२ :
निर्णय :
१) आरंभिक अधिकारिता के दण्ड न्यायालय में होने वाले प्रत्येक विचारण में निर्णय पीठासीन अधिकारी द्वारा खुले न्यायालय में या तो विचारण के खत्म होने के पश्चात् तुरन्त या बाद में पैतालीस दिन से अनधिक किसी समय, जिसकी सूचना पक्षकारों या उनके प्लीडरों को दी जाएगी :-
(a) क) संपूर्ण निर्णय देकर सुनाया जाएगा ; या
(b) ख) संपूर्ण निर्णय पढकर सुनाया जाएगा; या
(c) ग) अभियुक्त या उसके प्लीडर द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निर्णय का प्रवर्तनशी भाग पढकर और निर्णय का सार समझाकर सुनाया जाएगा ।
२) जहाँ उपधारा (१) के खण्ड (a)(क) के अधीन निर्णय दिया जाता है, वहाँ पीठासीन अधिकारी उसे आशुलिपि (शॉर्ट -हॅन्ड) में लिखवाएगा और जैसे ही अनुलिपि तैयार हो जाती है वैसे ही खुले न्यायालय में उस पर और उसके प्रत्येक पृष्ट पर हस्ताक्षर करेगा, और उस पर निर्णय दिए जाने की तारीख डालेगा ।
३) जहाँ निर्णय या उसका प्रवर्तनशील भाग, यथास्थिति, उपधारा (१) के खण्ड (b)(ख) या खण्ड (c)(ग) के अधीन पढकर सुनाया जाता है, वहाँ पीठासीन अधिकारी द्वारा खुले न्यायालय में उस पर तारीख डाली जाएगी और हस्ताक्षर किए जाएँगे और यदि वह उसके द्वारा स्वयं अपने हाथ से नही लिखा गया है तो निर्णय के प्रत्येक पृष्ठ पर उसके द्वारा हस्ताक्षर किए जाएँगे ।
४) जहाँ निर्णय उपधारा (१) के खण्ड (c)(ग) में विनिर्दिष्ट रीति से सुनाया जाता है, वहाँ संपूर्ण निर्णय या उसकी एक प्रतिलिपि पक्षकारों या उनके प्लीडरों के परिशीलन के लिए तुरन्त नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी :
परंतु यह कि न्यायालय जहां तक संभव हो निर्णय की तारीख से सात दिन की अवधि के भीतर अपने पोर्टल पर निर्णय की प्रति अपलोड करेगा ।
५) यदि अभियुक्त अभिरक्षा में तो निर्णय सुनने के लिए या तो उसे व्यक्तिगत रुप से या श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों के माध्यम से, लाया जाएगा ।
६)यदि अभियुक्त अभिरक्षा में नहीं है तो उससे न्यायालय द्वारा सुनाए जाने वाले निर्णय को सुनने के लिए हाजिर होने की अपेक्षा की जाएगी, किन्तु उस दशा में नहीं की जाएगी जिसमें विचारण के दौरान उसकी वैयक्तिक हाजिरी से उसे अभिमुक्ती दे दी गई है और दण्डादेश केवल जुर्माने का है या उसे दोषमुक्त किया गया है :
परन्तु जहाँ एक से अधिक अभियुक्त है और उनमें से एक या एक से अधिक उस तारीख को न्यायालय में हाजिर नहीं है जिसको निर्णय सुनाया जाने वाला है तो पीठासीन अधिकारी उस मामले को निपटाने में अनुचित विलम्ब से बचने के लिए उनकी अनुपस्थिति में भी निर्णय सुना सकता है ।
७) किसी भी दण्ड न्यायालय द्वारा सुनाया गया कोई निर्णय केवल इस कारण विधित: अमान्य न समझा जाएगा कि उसके सुनाए जाने के लिए सूचित दिन को या स्थान में कोई पक्षकार या उसका प्लीडर अनुपस्थित था या पक्षकारों पर या उनके प्लीडरों पर या उनमें से किसी पर ऐसे दिन और स्थान की सूचना की तामील करने में काई लोप या त्रुटि हुई थी ।
८) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नही लगाया जाएगा कि वह धारा ५११ के उपबंधों के विस्तार को किसी प्रकार से परिसीमित करती है ।