भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३८५ :
जहाँ न्यायालय का विचार है कि मामले में धारा ३८४ के अधीन कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए वहाँ प्रकिया :
१) यदि किसी मामले में न्यायालय का यह विचार है कि धारा ३८४ में निर्दिष्ट और उसकी दृष्टिगोचरता या उपस्थिति में किए गए अपराधों में से किसी के लिए अभियुक्त व्यक्ति जुर्माना देने में व्यतिक्रम करने से अन्यथा कारावासित किया जाना चाहिए या उस पर दो सौ रुपए से अधिक जुर्माना अधिरोपित किया जाना चाहिए या किसी अन्य कारण से उस न्यायालय की यह राय है कि मामला धारा ३८४ के अधीन नहीं निपटाया जाना चाहिए तो वह न्यायालय उन तथ्यों को जिनसे अपराध बनता है और अभियुक्त के कथन को इसमें पूर्व उपबंधित प्रकार से अभिलिखित करने के पश्चात्, मामला उसका विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को भेज सकेगा और ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे व्यक्ती की हाजिरी के लिए प्रतिभूति दी जाने की अपेक्षा कर सकेगा, अथवा यदि पर्याप्त प्रतिभूति न दी जाए तो ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा ।
२) वह मजिस्ट्रेट, जिसे कोई मामला इस धारा के अधीन भेजा जाता है, जहाँ तक हो सके इस प्रकार कार्यवाही करने के लिए अग्रसर होगा मानो वह मामला पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित है ।