भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३८३ :
मिथ्या साक्ष्य देने पर विचारण के लिए संक्षिप्त प्रक्रिया :
१) यदि किसी न्यायिक कार्यवाही को निपटाते हुए निर्णय या अंतिम आदेश देते समय कोई सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह राय व्यक्त करता है कि ऐसी कार्यवाही में उपस्थित होने वाले किसी साक्षी ने जानते हुए या जानूबझकर मिथ्या साक्ष्य दिया है या इस आशय से मिथ्या साक्ष्य गढा है कि ऐसा साक्ष्य ऐसी कार्यवाही में प्रयुक्त किया जाए तो यदि उसका समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में यह आवश्यक और समीचीन है कि साक्षी का, यथास्थिति, मिथ्या साक्ष्य देने या गढने के लिए संक्षेपत: विचारण किया जाना चाहिए तो वह ऐसे अपराध का संज्ञान कर सकेगा और अपराधी को ऐसा कारण दर्शित करने का कि क्यों न उसे ऐसे अपराध के लिए दण्डित किया जाए, उचित अवसर देने के पश्चात् ऐसे अपराधी का संक्षेपत: विचारण कर सकेगा और उसे कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी य जुर्माने से जो पाँचसौ रुप तक का हो सकेगा अथवा दोनों से दण्डित कर सकेगा ।
२) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय संक्षिप्त विचारणों के लिए विहित प्रक्रिया का यथासाध्य अनुसरण होगा ।
३) जहाँ न्यायालय इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए अग्रसर नहीं होता है वहाँ इस धारा की कोई बात, अपराध के लिए धारा ३७९ के अधीन परिवाद करने की उस न्यायालय की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी ।
४) जहाँ, उपधारा (१) के अधीन किसी कार्यवाही के प्रारंभ किए जाने के पश्चात् सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत कराया जाता है कि उस निर्णय या आदेश के विरुद्ध जिसमें उस उपधारा में निर्दिष्ट राय अभिव्यक्त की गई है अपील या पुनरिक्षण के लिए आवेदन किया गया है वहाँ वह, यथास्थिति, अपील या पुनरिक्षण के आवेदन के निपटाए जाने तक आगे विचारण की कार्यवाहियों को रोग देगा और तब आगे विचारण की कार्यवाहियाँ अपील या पुनरिक्षण के आवेदन के परिणामों के अनुसार होंगी ।