भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३७४ :
चित्त-विकृति के आधार पर दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का सुरक्षित अभिरक्षा में निरुद्ध किया जाना :
१) जब कभी निष्कर्ष में यह कथित है क अभियुक्त व्यक्ति ने अभिकथित कार्य किया है तब वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय, जिसके समक्ष विचारण किया गया है उस दशा में जब ऐसा कार्य उस असमर्थता के न होने पर, जो पाई गई, अपराध होता –
(a) क) उस व्यक्ति को ऐसे स्थान में और ऐसी रीति से, जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय ठीक समझे, सुरक्षित अभिरक्षा में निरुद्ध करने का आदेश देगा ; अथवा
(b) ख) उस व्यक्ति को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौपने का आदेश देगा ।
२) लोक मानसिक स्वास्थ्य स्थापन में अभियुक्त को निरुद्ध करने का उपधारा (१) के खण्ड (a)(क) अधीन कोई आदेश राज्य सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम २०१७ (२०१७ का १०) के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार ही किया जाएगा अन्यथा नहीं ।
३) अभियुक्त को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौपने का उपधारा (१) के खण्ड (b) (ख) के अधीन कोई आदेश उसके ऐसे नातेदार या मित्र के आवेदन पर और उसके द्वारा निम्नलिखित बातों की बाबत मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समाधानप्रद प्रतिभूति देने पर ही किया जाएगा अन्यथा नहीं :
(a) क) सौपे गए व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और वह अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुँचाने से निवारित रखा जाएगा;
(b) ख) सौपा गया व्यक्ति ऐसे अधिकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थानों पर, जो राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किए जाएँ, निरिक्षण के लिए पेश किया जाएगा ।
४) मजिस्ट्रेट या न्यायालय उपधारा (१) के अधीन की गई कार्यवाही की रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा ।