भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय २७ :
विकृत चित्त अभियुक्त व्यक्तियों के बारे में उपबंध :
धारा ३६७ :
अभियुक्त के विकृत चित्त होने की दशा में प्रक्रिया :
१) जब जाँच करने वाले मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है कि वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध जाँच की जा रही है विकृत चित्त है और परिणामत: अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तब मजिस्ट्रेट ऐसी चित्त-विकृति के तथ्य की जाँच करेगा और ऐसे व्यक्ति की परीक्षा उस जिले के सिविल सर्जन या अन्य ऐसे चिकित्सक अधिकारी द्वारा कराएगा, जिसे राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, और फिर ऐसे सिविल सर्जन या अन्य अधिकारी की साक्षी के रुप में परीक्षा करेगा और उस परिक्षा को लेखबद्ध करेगा ।
२) यदि सिविल सर्जन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त विकृत चित्त है, वह ऐसे व्यक्ति को किसी सरकारी अस्पताल या सरकारी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय के मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक के पास देखभाल, उपचार तथा रोग की पूर्व सूचना देने के लिए निर्दिष्ट करेगा तथा यथास्थिति मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट को सूचित करेगा कि क्या अभियुक्त चित्त-विकृति या बौद्धिक दिव्यांगता से ग्रस्त है या नहीं :
परन्तु यह कि यथास्थिति मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक द्वारा मजिस्ट्रेट को दी गई सूचना से यदि अभियुक्त व्यथित है, वह मेडिकल बार्ड के समक्ष अपील कर सकता है, जिसमें सम्मिलित होंगे :-
(a) क) निकटतम शासकीय चिकित्सालय में मनोचिकित्सा इकाई का प्रमुख; और
(b) ख) निकटतम शासकीय मेडिकल कॉलेज में मनोचिकिस्ता संकाय का सदस्य ।
३) ऐसी परिक्षा और जाँच लंबित रहने तक मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति के बारे में धारा ३६९ के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही कर सकता है ।
४) यदि मजिस्ट्रेट को सूचित किया जाता है कि उपधारा (२) में निर्दिष्ट किया गया व्यक्ति विकृत चित्त का व्यक्ति है, तो मजिस्ट्रेट यह और अवधारित करेगा कि क्या चित्त विकृति ने अभियुक्त को प्रतिरक्षा करने के लिए अक्षम बना दिया है और यदि अभियुक्त को इस प्रकार अक्षम पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट इस प्रभाव के निष्कर्ष को अभिलिखित करेगा, तथा अभियोजन द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के अभिलेख का परीक्षण करेगा तथा अभियुक्त के अधिवक्ता को सुनने के पश्चात् लेकिन अभियुक्त को प्रश्न किए बिना, यदि वह यह पाता है कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई प्रथम दृष्ट्या मामला सिद्ध नहीं होता है, तब वह जाँच को स्थगित करने के बजाए, अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा तथा उसके बारे में धारा ३६९ के अधीन उपबन्धित रीति से कार्यवाही करेगा :
परन्तु यह कि यदि मजिस्ट्रेट पाता है कि उस अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्ट्या मामला सिद्ध होता है जिसके सम्बन्ध में चित्त विकृतता का निष्कर्ष निकाला गया है, वह ऐसी अवधि के लिए कार्यवाही को मुल्तवी करेगा, जैसा कि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक की राय में अभियुक्त के उपचार के लिए अपेक्षित है तथा अभियुक्त के बारे में धारा ३६९ के अधीन यथा उपबन्धित ढंग से कार्यवाही करने का आदेश करेगा ।
५) यदि मजिस्ट्रेट को सूचित किया जाता है कि उपधारा (२) में निर्दिष्ट व्यक्ति बौद्धिक दिव्यांगता से ग्रस्त व्यक्ति है, तो मजिस्ट्रेट यह और इस बारे में अवधारित करेगा कि क्या बौद्धिक दिव्यांगता के कारण अभियुक्त को प्रतिरक्षा करने में अक्षम बना दिया है, तथा यदि अभियुक्त ऐसे अक्षम पाया जाता है, मजिस्ट्रेट जाँच को बन्द करना आदेशित करेगा तथा अभियुक्त के बारे में धारा ३६९ के अधीन उपबन्धित ढंग से कार्यवाही करेगा ।