भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३६५ :
भागत: एक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा और भागत: दुसरे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित साक्ष्य पर दोषसिद्धी या सुपुर्दगी :
१) जब कभी किसी जाँच या विचारण में साक्ष्य को पुर्णत: या भागत: सुनने और अभिलिखित करने के पश्चात कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट उसमें अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता है और कोई अन्य न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट, जिसे ऐसी अधिकारीता है और जो उसका प्रयोग करता है, उसका उत्तरवर्ती हो जाता है, तो ऐसा उत्तरवर्ती न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट अपने पूववर्ती द्वारा ऐसा अभिलिखित या भागत: अपने पूववर्ती द्वारा अभिलिखित और भागत: अपने द्वारा अभिलिखित साक्ष्य पर कार्य कर सकता है :
परन्तु यदि उत्तरवर्ती न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट की यह राय है कि साक्षियों में से किसी की जिसका साक्ष्य पहले ही अभिलिखित किया जा चुका है, अतिरिक्त परिक्षा करना न्याय के हित में आवश्यक है तो वह किसी भी ऐसे साक्षी को पुन:समन कर सकता है और ऐसी अतिरिक्त परिक्षा, प्रतिपरिक्षा और पुन:परिक्षा के, यदि कोई हो, जैसी वह अनुज्ञात करे, पश्चात वह साक्षी उन्मोजित कर दिया जाएगा ।
२) जब कोई मामला एक न्यायाधीश से दुसरे न्यायाधीश को या एक मजिस्ट्रेट से दूसरे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के उपबंधो के अधीन अंतरित किया जाता है तब उपधारा (१) के अर्थ में पूर्वकथित मजिस्ट्रेट के बारे में समझा जाएगा कि वह उसमें अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता है और पश्चात्कथित मजिस्ट्रेट उसका उत्तरवर्ती हो गया है ।
३) इस धारा की कोई बात संक्षिप्त विचारणों को या उन मामलों को लागू नहीं होती है, जिनमें कार्यवाहियाँ धारा ३६१ के अधीन रोग दी गई है या जिसमें कार्यवाहियाँ वरिष्ठ मजिस्ट्रेट को धारा ३६४ के अधीन भेज दी गई है ।