भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३६० :
अभियोजन वापस लेना :
किसी मामले का भारसाधक कोई लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन को या तो साधारणत: या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के बारे में जिनके लिए उस व्यक्ति का विचारण किया जा रहा है, न्यायालय की सम्मति से वापर ले सकता है और ऐसे वापर लिए जाने पर –
(a) क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पहले किया जाता है तो अभियुक्त ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में उन्मोचित कर दिया जाएगा;
(b) ख) यदि वह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात या जब इस संहिता द्वारा कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तब किया जाता है तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में दोषमुक्त कर दिया जाएगा;
परन्तु जहाँ –
एक) ऐसा अपराध किसी ऐसी बात से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध है जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है , अथवा
दो) ऐसे अपराध का अन्वेषण किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन किया गया है, अथवा
तीन) ऐसे अपराध में केन्द्रीय सरकार को किसी संपत्ती का दुर्विनियोग, नाश या नुकसान अन्तग्र्रस्त है, अथवा
चार) ऐसा अपराध केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा किया गया है, जब वह अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करना तात्पर्यित है,
और मामले का भारसाधक अभियोजन केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह जब तक केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे ऐसा करने की अनुज्ञा नहीं दी जाती है, अभियोजन को वापस लेने के लिए न्यायालय से उसकी सम्मति के लिए निवेदन नहीं करेगा तथा न्यायालय अपनी सम्मति देने के पूर्व, अभियोजक को यह निदेश देगा कि वह अभियोजन को वापस लेने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुज्ञा उसके समक्ष पेश करे :
परंतु यह और कि कोई न्यायालय उस मामले में पीडित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी अनुज्ञात नहीं करेगा ।